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[ उ. ] गोयमा ! अत्थेगइया सादीया सपज्जवसिया चत्तारि वि भाणियव्वा ।
९. [प्र.१ ] भगवन् ! जैसे वस्त्र सादि - सान्त है, [ किन्तु सादि - अनन्त नहीं है, अनादि - सान्त नहीं है और न अनादि-अनन्त है] वैसे जीवों के विषय में भी चारों भंगों को लेकर प्रश्न करना चाहिए-अर्थात् (भगवन् ! क्या जीव सादि - सान्त हैं, सादि - अनन्त हैं, अनादि - सान्त हैं अथवा अनादि-अनन्त हैं ?)
[उ.] गौतम ! कितने ही जीव सादि- सान्त हैं, [ कितने ही जीव सादि - अनन्त हैं, कई जीव अनादि - सान्त हैं और कितनेक अनादि-अनन्त हैं ] इस प्रकार जीव में चारों ही भंग कहने चाहिए।
9. [Q. 1] Bhante ! (As you have said) Cloth is with a beginning and with an end (but neither with a beginning and without an end, nor without a beginning and with an end, or without a beginning and without an end). In the same way are living beings (souls) with a beginning and with an end? All the four aforesaid questions should be asked (are they with a beginning and without an end, without a beginning and with an end, and without a beginning and without an end?)
[Ans.] Gautam ! Some beings are with a beginning and with an end. All the four answers should be given here (some are with a beginning and without an end, some are without a beginning and with an end, and some are without a beginning and without an end).
[प्र. २] से केणट्टेणं ?
[ उ. ] गोयमा ! नेरइया तिरिक्खजोणिया मणुस्सा देव गइरागडं पडुच्च सादीया सपज्जवसिया । सिद्धा गई पडुच्च सादीया अपज्जवसिया । भवसिद्धिया लद्धिं पडुच्च अणादीया सपज्जवसिया । अभवसिद्धिया संसारं पडुच्च अणादीया अपज्जवसिया भवंति । से तेणट्टेणं ।
[प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[उ.] गौतम ! नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव, गति और आगति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं; सिद्धगति (एक सिद्ध जीव ) की अपेक्षा से सिद्ध जीव सादि - अनन्त हैं; लब्धि की अपेक्षा (भव्यत्वलब्धि सिद्धि प्राप्ति तक रहती है अतः) भवसिद्धिक जीव अनादि - सान्त हैं, और संसार की अपेक्षा अभवसिद्धिक जीव अनादि-अनन्त हैं ।
[Q. 2] Bhante ! Why it is so ?
[Ans.] Gautam ! With reference to birth and rebirth (aagati and gati) infernal beings, animals, human beings and divine beings are with a beginning and with an end. With reference to Siddha gati (state of perfection) a liberated soul is with a beginning and without an end. With reference to the quality (worthiness) the beings destined to be liberated (bhavasiddhik jivas) are without a beginning and with an end. With
छठा शतक : तृतीय उद्देशक
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Sixth Shatak: Third Lesson
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