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[उ.] गौतम ! वस्त्र में पुद्गलों का जो उपचय होता है, वह सादि- सान्त होता है, किन्तु न तो वह सादि - अनन्त है, न अनादि-सान्त है और न अनादि-अनन्त होता है।
६. [ प्र. ] भगवन् ! वस्त्र में पुद्गलों का जो उपचय होता है- ( 9 ) क्या वह सादि - सान्त है, 5 (२) सादि - अनन्त है, (३) अनादि- सान्त है, अथवा (४) अनादि - अनन्त है ?
6. [Q.] Bhante ! Is the acquisition (upachaya ) of matter particles by cloth— (1) with a beginning and with an end, ( 2 ) with a beginning and without an end, (3) without a beginning and with an end, or (4) without a beginning and without an end?
[Ans.] Gautam ! The upachaya of matter particles by cloth—is with a beginning and with an end, and neither with a beginning and without an end, nor without a beginning and with an end, or without a beginning and without an end.
७. [ प्र. १ ] जहा णं भंते ! वत्थस्स पोग्गलोवचए सादीए सपज्जवसिए, नो सादीए अपज्जवसिए, नो अादी सपज्जवसिए, नो अणादीए अपज्जवसिए तहा णं जीवाणं कम्मोवचए पुच्छा ।
[उ. ] गोयमा ! अत्थेगइयाणं जीवाणं कम्पोवचए साईए सपज्जवसिए, अत्थेगइयाणं अणाईए सपज्जवसिए, अत्थेगइयाणं अणाईए अपज्जवसिए, नो चेव णं जीवाणं कम्मोवचए सादीए अपज्जवसिए ।
७. [१] हे भगवन् ! जिस प्रकार वस्त्र में पुद्गलोपचय सादि - सान्त है, किन्तु सादि - अनन्त, अनादि - सान्त और अनादि-अनन्त नहीं है, क्या उसी प्रकार जीवों का कर्मोपचय भी सादि - सान्त है, सादि - अनन्त है, अनादि- सान्त है, अथवा अनादि-अनन्त है ?
[उ.] गौतम ! कितने ही जीवों का कर्मोपचय ( 9 ) सादि - सान्त है, (२) कितने ही जीवों का कर्मोपचय अनादि - सान्त है, और (३) कितने ही जीवों का कर्मोपचय अनादि - अनन्त है, किन्तु (४) जीवों का कर्मोपचय सादि-अनन्त नहीं है ।
7. [Q. 1] Bhante ! The acquisition (upachaya ) of matter particles by cloth is with a beginning and with an end, and neither with a beginning and without an end, nor without a beginning and with an end, or without a beginning and without an end; does the acquisition (upachaya) of karmas by living beings follow the same pattern?
[Ans.] Gautam ! The acquisition (upachaya ) of karmas (1) by some beings is with a beginning and with an end, (2) that by some beings is without a beginning and with an end, (3) that by some beings is without a beginning and without an end, (4) but for no being it is with a beginning and without an end.
भगवती सूत्र ( २ )
(188)
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Bhagavati Sutra (2)
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