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45 4. (Q.) Bhante ! Are matter particles acquired (upachaya; here it 1 includes the whole process of acquisition, assimilation and augmentation) I by cloth through application (prayog) or naturally (vishrasa)? 4 (Ans.) Gautam ! It happens both through application as well as 5 naturally.
५. [प्र. १ ] जहा णं भंते ! वत्थस्स णं पोग्गलोवचए पयोगसा वि, वीससा वि तहा णं जीवाणं कम्मोवचए किं पयोगसा, वीससा ?
[उ. ] गोयमा ! पयोगसा, नो वीससा।
५. [प्र. १] भगवन् ! जिस प्रकार वस्त्र में पुद्गलों का उपचय प्रयोग से और स्वाभाविक रूप से ॐ होता है, तो क्या उसी प्रकार जीवों के कर्मपुद्गलों का उपचय भी प्रयोग से और स्वभाव से होता है ? म [उ. ] गौतम ! जीवों के कर्मपुद्गलों का उपचय प्रयोग से होता है, किन्तु स्वाभाविक रूप से नहीं होता। 3. 5. [Q. 1] Bhante ! Just as matter is acquired (upachaya) by cloth + 41 through application as well as naturally, are karma particles also
acquired (upachaya) by living beings (souls) through application as well as naturally?
[Ans.] Gautam ! Karma particles are acquired (upachaya) by living 卐 beings (souls) only through application and not naturally. ॐ [प्र. २ ] से केणटेणं ?
[उ.] गोयमा ! जीवाणं तिविहे पयोगे पण्णत्ते, तं जहा-मणप्पयोगे वइप्पयोगे कायप्पयोगे य। ॐ इच्चेएणं तिविहेणं पयोगेणं जीवाणं कम्मोवचए पयोगसा, नो वीससा। एवं सव्वेसिं पंचेंदियाणं तिविहे
पयोगे भाणियव्ये। पुढविक्काइयाणं एगविहेणं पयोगेणं, एवं जाव वणस्सइकाइयाणं। विगलिंदियाणं दुविहे ॐ पयोगे पण्णत्ते, तं जहा-वइप्पयोगे य, कायप्पयोगे य। इच्चेएणं दुविहेणं पयोगेणं कम्मोवचए पयोगसा, नो वीससा। से एएणटेणं जाव-नो वीससा। एवं जस्स जो पयोगो जाव वेमाणियाणं।
[प्र. २ ] भगवन् ! किस अपेक्षा से ऐसा कहा जाता है ?
[उ. ] गौतम ! जीवों के तीन प्रकार के प्रयोग कहे हैं-मनःप्रयोग, वचनप्रयोग और कायप्रयोग। इन तीन प्रकार के प्रयोगों से जीवों के कर्मों का उपचय होता है। इस प्रकार समस्त पंचेन्द्रिय जीवों के
तीन प्रकार का प्रयोग कहना चाहिए। पृथ्वीकायिक से लेकर वनस्पतिकायिक (पंचस्थावर) जीवों तक के 5 एक प्रकार के (काय) प्रयोग से (कर्मपुद्गलोपचय होता है।) विकलेन्द्रिय जीवों के दो प्रकार से प्रयोग के होते हैं, यथा-वचनप्रयोग और कायप्रयोग। अतः उनके इन दो प्रयोगों से कर्म (पुद्गलों) का उपचय
होता है। यों समस्त जीवों के कर्मोपचय प्रयोग से होता है, स्वाभाविक रूप से नहीं। इसी कारण से कहा ॐ गया है कि यावत् स्वाभाविक रूप से नहीं होता। इस प्रकार जिस जीव का जो प्रयोग हो, वह कहना
चाहिए। यावत् वैमानिक तक (यथायोग्य) प्रयोगों से कर्मोपचय का कथन करना चाहिए। | भगवती सूत्र (२)
Bhagavati Sutra (2)
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