________________
फ़फ़फ़
5
5 always and continuously (sada-satat ) ? Does his soul ( embodied soul) 5 continue to transform time and again into perfection... and so on up to... 5 states of joy and happiness? (in the preceding aphorism ignoble attributes have been mentioned but here noble attributes like good colour and good odour should be mentioned)
[Ans.] Yes, Gautam ! Living beings with little karmas (alpakarma) undergo transformation as you have said.
5
[प्र. २] से केणट्टेणं ?
[उ.] गोयमा ! से जहानामए वत्थस्स जल्लियस्स वा पंकियस्स वा मइल्लियस्स वा रइल्लियस्स वा आवी परिकम्मिज्जमाणस्स सुद्धेणं वारिणा धोव्वेमाणस्स सव्वओ पोग्गला भिज्जंति जाव परिणमंति, सेते ।
विवेचन : महाकर्म तथा अल्पकर्म- इन दोनों अवस्थाओं को ही वस्त्र के दृष्टान्त से समझाया गया है(१) नया वस्त्र पहनने से धीमे-धीमे मलिन होता जाता है, वैसे ही महाआस्रव वाला आत्मा अशुभ प्रवृत्तियों द्वारा मलिन होता जाता है। (२) जैसे मलिन वस्त्र धोने पर उज्ज्वल हो जाता है, वैसे ही अल्प आस्रव वाला 5 आत्मा तपश्चरण आदि के द्वारा कर्मनिर्जरा करता हुआ निर्मल होता रहता है।
फ्र
[प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[उ. ] गौतम ! जैसे कोई जल्लित ( शरीर के मल से-मैला), पंकित (कीचड़ सना), मैलसहित अथवा धूल से भरा वस्त्र हो और उसे शुद्ध करने का क्रमशः प्रयत्न किया जाये, उसे स्वच्छ पानी से धोया जाये तो उस पर लगे हुए मैले - अशुभ पुद्गल सब ओर से अलग होने लगते हैं, यावत् उसके पुद्गल शुभरूप में परिणत हो जाते हैं, (इसी तरह अल्पकर्म वाले जीव के विषय में भी पूर्वोक्त रूप से सब कथन करना चाहिए।) इसी कारण से, (अल्पकर्म वाले जीव के लिए कहा गया है कि वह यावत् बार-बार परिणत होता है ।)
[Q. 2] Bhante ! Why is it so?
[Ans.] Gautam ! Suppose there is a dirty and stained piece of cloth covered with slime and dirt. When successive efforts are made to cleanse it and wash it with clear water, the bad matter particles start getting 5 separated from it from all directions... and so on up to... in due course its 5 constituent particles turn good and clean (in the same way the aforesaid statement about beings with little karmas should be repeated). That is why it is said so. (beings with little karmas continue to transform time and again into perfection)
भगवती
सूत्र (२)
महाकर्म वाले की आत्मा के साथ ही उसका शरीर, आभामण्डल आदि सभी अनिष्ट अदर्शनीय, अशोभनीय तथा मलिन होता जाता है तथा अल्पकर्म वाले का शरीर सुन्दर, शोभनीय, प्रभावशाली, कांतिमान होता रहता
卐
Bhagavati Sutra (2)
(184)
Jain Education International
फ्र
For Private & Personal Use Only
55
*********தமிமிமிமிமிமிமிமிததமிதிமிதிமிததமிமிமிமிமிததி
卐
5
www.jainelibrary.org