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म [उ. ] गौतम ! जैसे कोई अहत-(बिना पहना हुआ), धौत-(पहनने के बाद धोया हुआ), और,
तन्तुगत-(ताजा बुनकर उतरा हुआ) वस्त्र हो, वह वस्त्र जब क्रमशः उपयोग में लिया जाता है, तो म उसके पुद्गल सब ओर से बँधते हैं, सब ओर से चय होते हैं, यावत् कालान्तर में वह वस्त्र अत्यन्त
मैला और दुर्गन्धित रूप में परिणत हो जाता है; इसी प्रकार महाकर्म वाला जीव उपर्युक्त रूप से यावत्
असुखरूप में बार-बार परिणत होता है। है [Q.2] Bhante ! Why is it so?
[Ans.] Gautam ! When a new or washed or fresh-from-loom piece of cloth is used regularly, it acquires and assimilates matter particles from all directions... and so on up to... in due course that piece of cloth turns dirty and malodorous. In the same way living beings with extensive
karmas (mahakarma) undergo transformation... and so on up to... states fi of misery and unhappiness time and again.
३. [प्र. १ ] से नूणं भंते ! अप्पकम्मस्स अप्पकिरियस्स अप्पासवस्स अप्पवेयणस्स सवओ पोग्गला भिज्जंति, सव्वओ पोग्गला छिज्जंति, सबओ पोग्गला विद्धंसंति, सबओ पोग्गला परिविद्धंसंति, सया
समियं पोग्गला भिज्जंति छिज्जंति विद्धंसंति परिबिद्धंसंति, सया समियं च णं तस्स आया सुरूवत्ताए पसत्थं # नेयव्वं जाव सुहत्ताए, नो दुक्खत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति ? # [उ. ] हंता, गोयमा ! जाव परिणमंति।
३. [प्र. १ ] भगवन् ! क्या अल्पकर्म वाले, अल्पक्रिया वाले, अल्पआस्रव वाले और अल्पवेदना # वाले जीव के पुद्गलों का भेदन होता है। पूर्व सम्बन्ध-विशेष को छोड़कर अलग होता? सर्वतः पुद्गल के
छिन्न होते (टूटते) जाते हैं ? सर्वतः पुद्गल विध्वस्त होते जाते हैं ? सर्वतः पुद्गल समग्ररूप से ध्वस्त हो # जाते हैं ? क्या सदा सतत पुद्गल भिन्न, छिन्न, विध्वस्त और परिविध्वस्त होते हैं ? क्या उस पुरुष की - आत्मा (बाह्य आत्मा) सदा सतत सुरूपता में यावत् सुखरूप में और अदुःखरूप में बार-बार परिणत
होता है ? (पूर्वसूत्र में अप्रशस्त पदों का कथन किया है, किन्तु यहाँ सब प्रशस्त-पदों का जैसे-शुभ वर्ण, # शुभ गन्ध आदि कथन करना चाहिए।)
[उ. ] हाँ, गौतम ! अल्पकर्म वाले जीव का आत्मा ऊपर कहे अनुसार ही यावत् परिणत होता है। † 3. [Q. 1] Bhante ! Do living beings with little karmas (alpakarma), little i activity (alpakriya), little influx (alpashrava) and little pain (alpavedana)
get separated from matter particles through all space-points and every way (sarvatah) ? Do these matter particles break apart from all spacepoints and every way (sarvatah)? Do they get destroyed through all spacepoints and every way (sarvatah) ? Do they get completely destroyed 4 through all space-points and every way (sarvatah) ? Do they get separated, break apart, get destroyed and get completely destroyed
गया
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छठा शतक : तृतीय उद्देशक
(183)
Sixth Shatak : Third Lesson 5555555555555555555EE
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