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[प्र. २. ] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ?
[ उ. ] गौतम ! असुरकुमारों के चार प्रकार के करण हैं। यथा-मनकरण, वचनकरण, कायकरण
और कर्मकरण । असुरकुमारों के ये चारों करण शुभ होने से वे करण से सातावेदना वेदते हैं, किन्तु अकरण से नहीं ।
९. इसी तरह (नागकुमार से लेकर) स्तनितकुमार तक कहना चाहिए।
[Q. 2] Bhante ! Why is it so?
[Ans.] Gautam ! Asur Kumar gods have four types of karan mind - instrument, speech-instrument, body-instrument and karma
instrument. With them all these four karans are noble, so they have pleasant experience through these and not through akaran.
9. The same should be repeated for Stanit Kumar gods (starting from Naag Kumar gods).
फ्र
१०. [ प्र.] पुढविकाइयाणं एवामेव पुच्छा ।
[ उ. ] नवरं इच्चेएणं सुभासुभेणं करणेणं पुढविकाइया करणओ वेमायाए वेदणं वेदेंति, नो अकरणओ । ११. ओरालियसरीरा सव्वे सुभासुभेणं वेमायाए । १२. देवा सुभेणं सायं ।
१०. [ प्र. ] भगवन् ! क्या पृथ्वीकायिक जीव करण द्वारा वेदना वेदते हैं, या अकरण द्वारा ।
[उ. ] गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव करण द्वारा वेदना वेदते हैं, किन्तु अकरण द्वारा नहीं । विशेष यह है कि इनके करण शुभाशुभ होने से ये करण द्वारा विमात्रा से (विविध प्रकार से) वेदना वेदते हैं; ये किन्तु अकरण द्वारा नहीं । अर्थात् पृथ्वीकायिक जीव शुभकरण होने से सातावेदना वेदते हैं और फ्र कदाचित् अशुभ करण होने से असातावेदना वेदते हैं।
फ्र
असातावेदना) वेदते हैं । १२. देव (चारों प्रकार के देव) शुभ करण द्वारा सातावेदना वेदते हैं।
10. [Q.] Bhante ! Do Earth-bodied beings have experience through karan (instrument) or through akaran (without instrument) ?
११. औदारिक शरीर वाले सभी जीव अर्थात् पाँच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय तिर्यंचपंचेन्द्रिय 5
भगवती सूत्र ( २ )
卐 और मनुष्य, शुभाशुभ करण द्वारा विमात्रा से वेदना (कदाचित् सातावेदना और कदाचित् फ्र
2 45 5 5 5 5 55 55 46 5 5 5 5 5 5 5 5955555 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 595555 5552
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[Ans.] Gautam ! Earth-bodied beings have experience through 5 instrument and not without instrument. However, the difference in their case is that they have both noble and ignoble karans (instruments) resulting in diverse experiences through karan and not through akaran. This means that earth-bodied beings have pleasant experience when the karan is noble and unpleasant experience when the karan is ignoble.
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Bhagavati Sutra (2)
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फ्र
2 5 5 5 5 55 55 5 5 5555 5 5 5 5 5 55 5555 5 5 5 5 5 59595952
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