________________
355555555555555555558 नागासाककककककक
451 (Ans.) Gautam ! Infernal beings have unpleasant experience through
instrument and they do not have unpleasant experience without
instrument. म [प्र. २ ] से केणटेणं ? __ [उ. ] गोयमा ! नेरइयाणं चउबिहे करणे पण्णत्ते, तं जहा-मणकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे। इच्चेएणं चउबिहेणं असुभेणं करणेणं नेरइया करणओ असायं वेदणं वेदेति, नो अकरणओ,
से तेणटेणं०। 5 [प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[उ.] गौतम ! नैरयिक जीवों के चार प्रकार के करण होते हैं, जैसे कि मनकरण, वचनकरण, ॐ कायकरण और कर्मकरण। उनके ये चारों ही प्रकार के करण अशुभ होने से वे करण द्वारा है + असातावेदना वेदते हैं, अकरण द्वारा नहीं। इस कारण से ऐसा कहा गया है कि नैरयिक जीव करण से E असातावेदना वेदते हैं, अकरण से नहीं। Si (Q. 2] Bhante ! Why is it so ?
[Ans.] Gautam ! Infernal beings have four types of karan-man-karan 4 (mind-instrument), vachan-karan (speech-instrument), kaayakaran
(body-instrument) and karmakaran (karma-instrument). With them all 卐 f these four karans are ignoble, so they have unpleasant experience
through these ignoble karans only and not through akaran. That is why it is said that infernal beings have unpleasant experience through karan (instrument) and not through akaran (without instrument).
८.[प्र. १ ] असुरकुमारा णं किं करणओ, अकरणओ ? [उ. ] गोयम ! करणओ, नो अकरणओ। ८.[प्र. १ ] असुरकुमार देव क्या करण से सातावेदना वेदते हैं, अथवा अकरण से? [उ. ] गौतम ! असुरकुमार करण से सातावेदना वेदते हैं, अकरण से नहीं।
8. [Q. 1] Bhante ! Do Asur Kumar gods have pleasant experience through karan or through akaran ?
(Ans.] Gautam ! Asur Kumar gods have pleasant experience through karan (instrument) and not through akaran (without instrument).
[प्र. २ ] से केणटेणं भंते !
[उ. ] गोयमा ! असुरकुमाराणं चउबिहे करणे पण्णत्ते, तं जहा-मणकरणे, वइकरणे, कायकरणे, कम्मकरणे। इच्चेएणं सुभेणं करणेणं असुरकुमारा णं करणओ सायं वेदणं वेदेति, नो अकरणओ।
९. एवं जाव थणियकुमारा।
a5555555 55 $$$$ $$$$$ $$$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
| छठा शतक : प्रथम उद्देशक ___ (175)
Sixth Shatak : First Lesson 15555555555555555555555555555))
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org