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night occur here because there is movement of the sun and the moon in this area. No living being other than the humans of the human world and living outside this world has awareness of units of time including Samaya and Avalika. This is because beyond the human world the sun and the moon are stationary and as a consequence there is neither measure nor evidence of units of time. In the infernal world sun does not exist. Although there are numerous five-sensed animals, abode dwelling, interstitial and stellar gods in the human world, their number is minimal as compared to that outside the human world. As such, the statement that five-sensed animals, abode dwelling, interstitial and stellar gods have no awareness of units of time is with regard to that larger number outside the human world.
Maan and Pramaan-Samaya, Avalika etc. are units of time. Of these comparatively smaller units are classified as maan and larger units are classified as pramaan. For example when Muhurt comes under the class maan, Lava being smaller comes under the class maan. Thus maan and pramaan should be taken as relative terms. (Vritti leaf 247)
पाश्र्वापत्य स्थविरों द्वारा पंचमहाव्रत धर्म स्वीकार ACCEPTANCE OF FIVE GREAT VOWS BY PARSHVAPATYA ASCETICS
१४. [प्र. १] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी-से नूणं भंते ! असंखेज्जे लोए, अणंता राईदिया उप्पज्जिसु वा उप्पाजंति वा उप्पग्जिस्संति वा ?, विगच्छिंसु वा विगच्छंति वा विगछिस्संति वा ?, परित्ता राइंदिया उप्पग्जिसु वा उपजंति वा उप्पज्जिस्संति वा ? विगच्छिंसु वा ३ ?
[उ. ] हंता, अज्जो ! असंखेज्जे लोए, अणंता राईदिया० तं चेव।
१४. [प्र. १] उस काल और उस समय में पार्थापत्य (पार्श्वनाथ भगवान के सन्तानीय शिष्य) स्थविर भगवन्त, जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे, वहाँ आए। वहाँ आकर वे श्रमण भगवान महावीर से यथायोग्य स्थान पर खड़े रहकर इस प्रकार पूछने लगे-भगवन् ! असंख्य लोक में क्या अनन्त रात्रिदिवस उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे; तथा नष्ट हुए हैं, नष्ट होते हैं और नष्ट होंगे? अथवा परिमित (नियत परिमाण वाले) रात्रि-दिवस उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे; तथा नष्ट हुए हैं, नष्ट होते हैं और नष्ट होंगे?
[उ. ] हाँ, आर्यो ! असंख्य लोक में अनन्त रात्रि-दिवस उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं, यावत् उपर्युक्त रूप सम्पूर्ण पाठ कहना चाहिए।
(पंचम शतक : नवम उद्देशक
(159)
Fifth Shatak: Ninth Lesson
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