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[प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से (ऐसा कहा जाता है)? __[उ. ] गौतम ! यहाँ (मनुष्यलोक में) उनका (समयादि का) मान है, यहाँ उनका प्रमाण है, इसलिए यहाँ उनको उनका (समयादि का) इस प्रकार से प्रज्ञान होता है, यथा-'यह समय है, या यावत् यह उत्सर्पिणी काल है। इस कारण से यहाँ रहे हुए मनुष्यों को समयादि का प्रज्ञान होता है।' ____12. [Q. 1] Bhante ! Do the human beings living here (in the world of humans) have the specific awareness (prajnana) that this is Samaya ... and so on up to... progressive cycle of time ?
[Ans.) Yes, Gautam ! They have that awareness. [Q.2] Bhante ! Why is it so?
[Ans.] Gautam ! Here (in the world of humans) there are comparative measures (maan and pramaan) and therefore there is the awareness
that this is Samaya... and so on up to... progressive cycle of time; that is 4 why the human beings living here have the awareness (prajnana) of 41 such units like Samaya.
१३. वाणमंतर-जोइस-वेमाणियाणं जहा नेरइयाणं।
१३. जिस प्रकार नैरयिक जीवों के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं ॐ वैमानिक देवों के (समयादिप्रज्ञान के) विषय में कहना चाहिए।
13. As has been stated (about awareness of Samaya etc.) with regard to infernal beings so should be repeated with regard to Vanavyantar, 4 Jyotishk and Vaimanik Deus.
विवेचन : जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड, अर्धपुष्कर द्वीप, यह अढाई द्वीप समय क्षेत्र (मनुष्यलोक) है। यहाँ सूर्य
चन्द्र भ्रमण करते हैं, इसलिए दिन-रात होते हैं। मनुष्यलोक में स्थित मनुष्यों के अतिरिक्त मनुष्यलोक के बाहर ॐ किसी भी जीव को समय, आवलिका आदि का ज्ञान नहीं होता; क्योंकि वहाँ सूर्य-चन्द्र आदि स्थिर होने से
समयादि का मान-प्रमाण नहीं होता है। सूर्य की गति नरकादि में नहीं है। यद्यपि मनुष्यलोक में कितने ही
तिर्यंच-पंचेन्द्रिय, भवनपति, वाणव्यन्तर और ज्योतिष्क देव हैं, तथापि वे स्वल्प हैं। मनुष्यलोक के बाहर वे ॐ बहुत हैं। अतः उन बहुतों की अपेक्षा से यह कहा गया है कि पंचेन्द्रियतिर्यंच, भवनपति, वाणव्यन्तर एवं ज्योतिष्कदेव समय आदि कालविभाग को नहीं जानते।
मान और प्रमाण का अर्थ-समय, आवलिका आदि काल के विभाग हैं। इनमें अपेक्षाकृत सूक्ष्म काल 'मान' कहलाता है और अपेक्षाकृत प्रकृष्ट काल 'प्रमाण' । जैसे-'मुहूर्त' मान है, मुहूर्त की अपेक्षा सूक्ष्म होने से 'लव' प्रमाण है। इस प्रकार अपेक्षा भेद से मान, प्रमाण जानना चाहिए। (वृत्ति पत्रांक २४७)
Elaboration-Jambudveep, Dhatakikhand and Ardhapushkar Dveep 卐 (half Pushkar continent), these two and a half continents (Adhaidveep);
comprise area of time (samaya kshetra) of the human world. Day and
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भगवती सूत्र (२)
(168)
Bhagavati Sutra (2)
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