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[ उ. ] गौतम ! यहाँ (मनुष्यलोक में ) समयादि का मान है, यहाँ उनका प्रमाण है, इसलिए यहाँ (समयादि का) ऐसा प्रज्ञापन होता है कि यह समय है, यावत् यह उत्सर्पिणीकाल है, (किन्तु नरक में न तो समयादि का मान है, न प्रमाण है और न ही प्रज्ञान है ।) इस कारण से नरकस्थित नैरयिकों को इस प्रकार से समय, आवलिका यावत् उत्सर्पिणी-अवसर्पिणीकाल का प्रज्ञान नहीं होता ।
[Q. 2] Bhante ! Why the infernal beings living in hells do not have the awareness (prajnana) of Samaya, Avalika and so on up to ... regressive cycle of time and progressive cycle of time?
[Ans.] Gautam ! Here (in the world of humans) there are comparative measures (maan and pramaan) of units like Samaya and therefore there is the awareness that this is Samaya and so on up to... progressive cycle of time; (but in the infernal world there is neither comparative measure nor evidence or awareness of units like Samaya) that is why the infernal beings living in hells do not have the awareness (prajnana) of such units as Samaya, Avalika and so on up to... regressive cycle of time and progressive cycle of time.
११. एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं ।
११. जिस प्रकार नरकस्थित नैरयिकों के (समयादिप्रज्ञान के) विषय में कहा गया है; उसी प्रकार (भवनपति देवों, स्थावर जीवों, तीन विकलेन्द्रियों से लेकर) यावत् पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों तक के लिए कहना चाहिए।
11. As has been stated (about awareness of Samaya etc.) with regard to infernal beings dwelling in infernal abodes so should be repeated with regard to beings (from Bhavan-pati Devs, immobile beings, two to foursensed beings... and so on ) up to... five sensed animals.
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१२. [ प्र. १ ] अत्थि णं भंते! मणुस्साणं इहगयाणं एवं पण्णायति, तं जहा - समया ति वा जाव उस्सप्पिणी ति वा ?
[उ. ] हंता, अत्थि ।
[प्र. २] से केणट्टेणं० ?
[उ.] गोयमा ! इहं तेसिं माणं, इहं तेसिं पमाणं, इहं चेव तेसिं एवं पण्णायति, तं जहा - समया ति वा जाव उस्सप्पिणी ति वा । से तेणट्ठेणं० ।
पंचम शतक : नवम उद्देशक
१२. [ प्र. १ ] भगवन् ! क्या यहाँ (मनुष्यलोक में) रहे हुए मनुष्यों को इस प्रकार का प्रज्ञान होता है, कि (यह ) समय ( है ), यावत् (यह) उत्सर्पिणीकाल ( है ) ?
[उ.] हाँ, गौतम ! होता है।
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Fifth Shatak: Ninth Lesson
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