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८. [.] हे भगवन् ! (निर्ग्रन्थीपुत्र !) द्रव्यादेश से क्षेत्रादेश से, कालादेश से और भावादेश से, प्रदेश और अप्रदेश पुद्गलों में कौन किन से कम, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक हैं ?
[उ. ] हे नारदपुत्र ! भावादेश से अप्रदेश पुद्गल सबसे थोड़े हैं। उनकी अपेक्षा कालादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येगुणा हैं; उनकी अपेक्षा द्रव्यादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येयगुणा हैं और उनकी अपेक्षा भी क्षेत्रादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येयगुणा हैं। उनसे क्षेत्रादेश से सप्रदेश पुद्गल असंख्यातगुणा हैं, उनसे द्रव्यादेशेन सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं, उनसे कालादेशेन सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं और उनसे भी भावादेशेन सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं।
8. [Q.] Bhante ! ( ascetic Nirgranthiputra) In context of substance (dravyadesh), in context of area (kshetradesh ), in context of time (kaaladesh) and in context of state (bhaavadesh ), out of pudgalas with sections (sa-pradesh) and those without sections (a-pradesh ), which are comparatively less, more, equal and much more ?
[Ans.] O Narad - putra ! Pudgalas without sections (a-pradesh) in context of state (bhaavadesh) are minimum. As compared to them pudgalas without sections (a-pradesh ) in context of time (kaaladesh) are innumerable times more; as compared to them pudgalas without sections (a-pradesh) in context of substance (dravyadesh ) are innumerable times more, and as compared to them pudgalas without sections (a-pradesh) in context of area (kshetradesh) are innumerable times more. As compared to them pudgalas with sections (sa-pradesh) in context of area (kshetradesh) are innumerable times more; as compared to them 5 pudgalas with sections (sa-pradesh) in context of substance (dravyadesh ) are much more; as compared to them pudgalas with sections (sapradesh) in context of time (kaaladesh) are much more and as compared to them pudgalas with sections (sa-pradesh) in context of state (bhaavadesh) are much more.
पंचम शतक : अष्टम उद्देशक
९. तए णं से नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं अणगारं वंदइ नमसइ । नियंठिपुत्तं अणगारं वंदित्ता 5 सत्ता यम सम्मं विणएणं भुज्जो भुज्जो खामेति, खामेत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।
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९. इसके पश्चात् (यह सुनकर ) नारदपुत्र अनगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार को वन्दन - नमस्कार
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किया। उन्हें वन्दन - नमस्कार करके उनसे इस ( अपनी कही हुई मिथ्या) बात के लिए सम्यक् फ विनयपूर्वक बार-बार क्षमायाचना की। इस प्रकार क्षमायाचना करके वे (नारदपुत्र - अनगार) संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे ।
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Fifth Shatak: Eighth Lesson
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9. At that ascetic Narad - putra paid homage and obeisance to ascetic 5 Nirgranthiputra and sought his forgiveness again and again with great
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