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म [उ. ] 'हे आर्य !' इस प्रकार सम्बोधित कर नारदपुत्र अनगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार से कहा- 5 4 "आर्य ! मेरे मतानुसार सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश ॐ नहीं हैं।"
3. [0.1 Once ascetic Nirgranthiputra came where ascetic Narad-putra was seated. Coming there he asked ascetic Narad-putra—“O noble one! In your view are all pudgalas (particles of matter and their aggregates) with halves (sa-ardh), with a middle (sa-madhya) and with sections $1 (sa-pradesh) or without halves (an-ardh), without a middle (a-madhya) ॥ and without sections (a-pradesh) ?
[Ans.] "O noble one !" Addressing thus ascetic Narad-putra replied to ascetic Nirgranthiputra—“O noble one! In my view all pudgalas (particles of matter and their aggregates) are with halves (sa-ardh), with a middle (sa-madhya) and with sections (sa-pradesh), and not without halves (anardh), without a middle (a-madhya) and without sections (a-pradesh).
४. [प्र. ] तए णं से नियंठिपुत्ते अणगारे नारयपुत्तं अणगारं एवं वयासी-जइ णं ते अज्जो ! सब पोग्गला सअड्ढा समज्झा सपदेसा, नो अणड्ढा अमज्झा अपदेसा; किं दव्वादेसेणं अज्जो ! सबपोग्गला सअड्ढा समज्झा सपदेसा, नो अणड्ढा अमज्झा अपदेसा ? खेत्तादेसेणं अज्जो ! सबपोग्गला सअड्ढा समज्झा सपदेसा ? तह चेव। कालादेसेणं० तं चेव ? भावादेसेणं० तं चेव ? ।
[उ.] तए णं से नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं अणगारं एवं वयासी-दव्बादेसेण वि मे अज्जो ! सबपोग्गला सअड्ढा समज्झा सपदेसा, नो अणड्ढा अमज्झा अपदेसा; खेत्तादेसेण वि सव्वपोग्गला सअड्ढा०; तह चेव कालादेसेण वि; तं चेव भावादेसेण वि।
४. [प्र. ] तत्पश्चात् उन निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से यों कहा-“हे आर्य ! यदि तुम्हारे मतानुसार सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं, तो क्या, हे आर्य ! द्रव्यादेश (द्रव्य की अपेक्षा) से वे सर्वपुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं ? अथवा हे आर्य ! क्या क्षेत्रादेश से भी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश आदि पूर्ववत् हैं ? या कालादेश से सभी पुद्गल उसी प्रकार हैं या भावादेश से समस्त पुद्गल उसी प्रकार हैं ?"
[उ. ] तदनन्तर वह नारदपुत्र अनगार, निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार से यों कहने लगे-“हे आर्य ! मेरे ॐ मतानुसार (विचार में), द्रव्यादेश से भी सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध,
अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं। क्षेत्रादेश से भी सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य आदि उसी तरह हैं, कालादेश से भी वे सब उसी तरह हैं, तथा भावादेश से भी उसी प्रकार हैं।"
4. [Q.] Then ascetic Nirgranthiputra asked ascetic Narad-putra-- "O Noble one! If in your view all pudgalas (particles of matter
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| भगवती सूत्र (२)
(132)
Bhagavati Sutra (2)
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