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पंचम शतक: अष्टम उद्देशक FIFTH SHATAK (Chapter Five) : EIGHTH LESSON
foufou NIRGRANTH (ASCETIC) निर्ग्रन्थीपुत्र और नारदपुत्र की चर्चा DISCUSSIONS OF NIRGRINTHIPUTRA AND NARAD-PUTRA
१. तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी नारयपुत्ते नामं अणगारे पगइभद्दए जाव विहरइ।
२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी नियंटिपुत्ते णामं अणगारे पगइभद्दए जाव विहरइ।
१. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर पधारे। परिषद् दर्शन के लिये गई, यावत् धर्मोपदेश श्रवण कर वापस लौट गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी (शिष्य) नारदपुत्र नाम के अनगार थे। वे प्रकृतिभद्र थे, यावत् आत्मा को भावित करते विचरते थे।
२. उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी निर्ग्रन्थीपुत्र नामक अनगार थे। वे प्रकृति से भद्र थे, यावत् विचरण करते थे।
1. During that period of time Bhagavan Mahavir arrived. People came out. Bhagavan gave his sermon. People dispersed. During that period of time there was an ascetic disciple of Bhagavan Mahavir wh name was Narad-putra. By nature he was noble (bhadra)... and so on up to... he moved about enkindling (bhaavit) his soul.
2. During that period of time there was an ascetic disciple of Bhagavan Mahavir whose name was Nirgranthiputra. By nature he was noble (bhadra)... and so on up to... he moved about enkindling (bhaavit) his soul.
३. [प्र. ] तए णं से नियंठिपुत्ते अणगारे जेणामेव नारयपुत्ते अणगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता नारयपुत्तं अणगारं एवं वयासी-सब्बपोग्गला ते अज्जो ! किं सअड्डा समज्झा सपदेसा ? उदाहु अणड्डा समज्झा अपएसा ?
[उ. ] 'अज्जो' त्ति नारयपुत्ते अणगारे नियंठिपुत्तं अणगारं एवं वयासी-सब्बपोग्गला ते अज्जो ! सअड्डा समज्झा सपदेसा, नो अणड्ढा अमज्झा अपएसा। ___३. [प्र. ] एक बार निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार, जहाँ नारदपुत्र नामक अनगार थे, वहाँ आए और उनके पास आकर उन्होंने नारदपुत्र अनगार से इस प्रकार पूछा-''हे आर्य ! तुम्हारे मतानुसार सब पुद्गल क्या सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, अथवा अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश हैं ?''
पंचम शतक : अष्टम उद्देशक
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Fifth Shatak: Eighth Lesson
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