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________________ म तिरिक्खजोणिणीओ आसण-सयण-खंभ-भंड-सचित्ताचित्त-मीसियाई दव्वाइं परिग्गहियाई भवंति; से तेणटेणं०। ३४. [प्र. ] भगवन् ! पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव क्या आरम्भ-परिग्रहयुक्त हैं ? [उ. ] गौतम ! पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव, आरम्भ परिग्रहयुक्त हैं, क्योंकि उन्होंने शरीर यावत् म कर्म परिगृहीत किये हैं तथा उनके टंक (पर्वत से विच्छिन्न टुकड़ा या पहाड़ की ढलान), कूट (पर्वत की ॐ चोटी), शैल (शिखररहित पर्वत), शिखरी (चोटी वाले पर्वत), प्राग्भार (कुछ झुके पर्वत के प्रदेश) परिगृहीत होते हैं। इसी प्रकार जल, स्थल, बिल, गुफा, लयन (पहाड़ खोदकर बनाए हुए पर्वतगृह) भी परिगृहीत होते हैं। उनके द्वारा उज्झर (पर्वततट से नीचे गिरने वाला जलप्रपात), निर्झर (पर्वत से बहने म वाला जलस्रोत-झरना), चिल्लल (कीचड़ मिला हुआ पानी या जलाशय), पल्लल ( प्रह्लाददायक जलाशय) तथा वप्रीण (क्यारियों वाला जलस्थान अथवा तटप्रदेश) परिगृहीत होते हैं। उनके द्वारा कूप, ॐ तड़ाग (तालाब), द्रह (झील या जलाशय), नदी, वापी (चौकोन बावड़ी), पुष्करिणी (गोल बावड़ी या ॐ कमलों से युक्त बावड़ी), दीर्घिका (हौज या लम्बी बावड़ी), सरोवर, सरपंक्ति (सरोवर श्रेणी), सरसरपंक्ति (एक सरोवर से दूसरे सरोवर में पानी जाने का नाला), एवं बिलपंक्ति (बिलों की श्रेणी) परिगृहीत होते के हैं तथा आराम (लतामण्डल आदि से सुशोभित आमोद-प्रमोद का स्थान), उद्यान (सार्वजनिक बगीचा), कानन (सामान्य वृक्षों से युक्त ग्राम के निकटवर्ती वन), वन (गाँव से दूर स्थित जंगल), वनखण्ड (एक ही ॐ जाति के वृक्षों से युक्त वन), वनराजि (वृक्षों की पंक्ति), ये सब परिगृहीत किये हुए होते हैं। फिर देवकुल के + (देवमंदिर), सभा, आश्रम, प्रपा (प्याऊ), स्तूभ (खम्भा या स्तूप), खाई, परिखा (ऊपर और नीचे समान 5 खोदी हुई खाई), ये भी परिगृहीत किये होते हैं; तथा प्राकार (किला), अट्टालक (अटारी या किले पर 卐 बनाया हुआ मकान अथवा झरोखा), चरिका (घर और किले के बीच में हाथी आदि के जाने का मार्ग), द्वार, गोपुर (नगरद्वार), ये सब परिगृहीत किये होते हैं। इनके द्वारा प्रासाद (देवभवन या राजमहल), ॐ घर, सरण (झोंपड़ा), लयन, आपण (दुकान) परिगृहीत किये जाते हैं। शृङ्गाटक (सिंघाड़े के आकार का 5A त्रिकोण मार्ग), त्रिक (तीन मार्ग मिलते हैं; ऐसा स्थान), चतुष्क (चौक-जहाँ चार मार्ग 0 मिलते हैं); चत्वर (जहाँ सब मार्ग मिलते हों ऐसा स्थान या आँगन), चतुर्मुख (चार द्वारों वाला मकान या ॐ देवालय), महापथ (राजमार्ग या चौड़ी सड़क) परिगृहीत होते हैं। शकट (गाड़ी), रथ, यान (सवारी या वाहन), युग्य (युगल हाथ प्रमाण एक प्रकार की पालखी), गिल्ली (अम्बाड़ी), थिल्ली (घोड़े का पलान काठी), शिविका (पालखी या डोली), स्यन्दमानिका (म्याना या सुखपालकी) आदि परिगृहीत किये होते है के हैं। लोही (लोहे की दाल-भात पकाने की देगची या तवा), लोहे की कड़ाही, कुड़छी आदि आदि चीजें + परिग्रहरूप में गृहीत होती हैं। इनके द्वारा भवन (भवनपति देवों के निवास स्थान) भी परिगृहीत होते हैं। म (इनके अतिरिक्त) देव-देवियाँ मनुष्य-नर-नारियाँ एवं तिर्यंच नर-मादाएँ, आसन, शयन, खण्ड + (टुकड़ा), भाण्ड (बर्तन या किराने का सामान) एवं सचित्त, अचित्त और मिश्र द्रव्य परिगृहीत होते हैं। इस कारण से ये पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव आरम्भ और परिग्रह से युक्त होते हैं, किन्तु ॐ अनारम्भी-अपरिग्रही नहीं होते। 如听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听。 因听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 भगवती सूत्र (२) (124) Bhagavati Sutra (2) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002903
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages654
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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