________________
听听听听听听听听听
卐55555555))))
055555555555555555555555555555555555550 म [उ. ] तं चेव जाव सरीरा परिग्गहिया भवंति, बाहरिया भंडमत्तोवगरणा परिग्गहिया भवंति, सचित्त
अचित्त भवंति एवं जाव चरिंदिया। म ३३. [प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव क्या सारम्भ-सपरिग्रह होते हैं, अथवा अनारम्भी एवं अपरिग्रही होते हैं ?
३३. [उ. ] गौतम ! द्वीन्द्रिय जीव भी आरम्भ-परिग्रह से युक्त हैं, वे अनारम्भी-अपरिग्रही नहीं हैं, इसका कारण भी वही पूर्वोक्त है। (वे षट्काय का आरम्भ करते हैं) तथा यावत् उन्होंने शरीर परिगृहीत फ़ किये हुए हैं, उनके बाह्य भाण्ड, मात्रक तथा विविध उपकरण परिगृहीत किये हुए होते हैं; एवं सचित्त, म अचित्त तथा मिश्र द्रव्य भी परिगृहीत किये हुए होते हैं। इसलिए वे अनारम्भी, अपरिग्रही नहीं होते। इसी
प्रकार त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों के विषय में जानना चाहिए। 4. 33. (Q.) Bhante ! Are two-sensed beings (dvindriya jivas) equipped
with faculties of action (aarambh; sinful activity) and acquisition (parigraha; possession) or are they without these faculties (anaarambh and aparigraha)?
(Ans.) Gautam ! Two-sensed beings (dvindriya jivas) too are equipped with faculties of action (aarambh; sinful activity) and acquisition (parigraha; possession). It is not that they are without these faculties
(anaarambh and aparigraha). The reason for this is also same as 卐 aforesaid. (They harm or destroy six classes of living beings)... and so on
up to... they have acquired bodies, ... seats, beds, utensils and a variety of other equipment as well as living, non-living and mixed things (with fondness). Therefore, they are said to be equipped with the said faculties and not without them. The same should be repeated for three-sensed and four-sensed beings.
३४. [प्र. ] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते !
[उ.] तं चेव जाव कम्मा परिग्गहिया भवंति, टंका कूडा सेला सिहरी पन्भारा परिग्गहिया भवंति, जल-थल-बिल-गुह-लेणा परिग्गहिया भवंति, उज्झर-निज्झर-चिल्लल-पल्लल-वप्पिणा परिग्गहिया
भवंति, अगड-तडाग-दह-नइओ वावि-पुक्खरिणी-दीहिया गुंजालिया सरा सरपंतियाओ * सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ परिग्गहियाओ भवंति, आराम-उज्जाणा काणणा वणाई वणसंडाई
वणराईओ परिग्गहियाओ भवंति, देवउल-सभा-पवा-थूभ खाइय-परिखाओ परिग्गहियाओ भवंति, 卐
पागारऽट्टालग-चरिय-दार-गोपुरा परिग्गहिया भवंति, पासाय-घर-सरण-लेण-आवणा परिग्गहिया ॐ भवंति, सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-महापहा परिग्गहिया भवंति, सगड-रह-जाण-जुग्ग-गिल्लि
थिल्लि-सीय-संदमाणियाओ परिग्गहियाओ भवंति, लोही-लोहकडाह-कडुच्छुया परिगहिया भवंति, ॐ भवणा-परिग्गहिया भवंति, देव देवीओ मणुस्सा चित्ताचित्त मणुस्सीओ तिरिक्खजोणिया
$$$$$$$$$ $$$$ 5听听听听听听听听听听听
855555555555555555555555555555555555555555
|पंचम शतक : सप्तम उद्देशक
(123)
Fifth Shatak: Seventh Lesson
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org