________________
5
फ्र
[Ans.] Gautam ! Asur Kumars are equipped with faculties of action 5 (aarambh; sinful activity) and acquisition (parigraha; possession). It is not that they are without these faculties (anaarambh and aparigraha)? [प्र. २] से केणट्टेणं ?
बेइन्द्रिय आदि आरंभी - परिग्रही TWO SENSED AND OTHER BEINGS
३३. [ प्र. ] बेइंदिया णं भंते! किं सारंभा सपरिग्गहा० ?
भगवती सूत्र ( २ )
[उ. ] गोयमा ! असुरकुमारा णं पुढविकायं समारंभंति जाव तसकायं समारंभंति, सरीरा परिग्गहिया भवंति, कम्मा परिग्गहिया भवंति, भवणा परिग्गहिया भवंति देवा देवीओ मणुस्सा मणुस्सीओ फ्र तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणिणीओ परिग्गहियाओ भवंति असण-सयण - भंडमत्तोवगरणा परिग्गहिया भवंति, सचित्त - अचित्त-मीसयाइं दव्वाइं परिग्गहियाइं भवंति से तेणट्टेणं तहेव । एवं जाव थणियकुमारा। फ्र
[प्र. २ ] भगवन् ! असुरकुमार किस कारण से सारम्भ एवं सपरिग्रह होते हैं ?
5
卐
[ उ. ] गौतम ! असुरकुमार पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय तक का समारम्भ करते हैं, तथा उन्होंने 5 शरीर परिगृहीत किये हुए हैं, कर्म परिगृहीत किये हुए हैं, भवन परिगृहीत किये हुए हैं, वे देव-देवियों, पुरुष - स्त्रियों, तिर्यञ्च - नर-मादाओं को परिगृहीत किये हुए हैं, तथा वे आसन, शयन, भाण्डमात्रक 5 ( बर्तन - कांसी आदि धातुओं के पात्र), एवं विविध उपकरण परिगृहीत किये हुए हैं; एवं सचित्त, 5 अचित्त तथा मिश्र द्रव्य परिगृहीत किये हुए हैं। इस कारण से वे आरम्भयुक्त एवं परिग्रह सहित हैं, किन्तु अनारम्भी और अपरिग्रही नहीं हैं। इसी प्रकार (नागकुमार से लेकर) यावत् स्तनितकुमार तक 5 कहना चाहिए।
卐
[Q. 2] Why do you say that?
卐
卐
[Ans.] Gautam ! Asur Kumars harm or destroy (samarambh) earth- 5 bodied beings (prithvikaya)... and so on up to... mobile beings (tras-kaya). फ्र Also, they have acquired bodies, karmas, mansions, gods-goddesses, फ्र men-women, male and female animals, seats, beds, utensils and a variety of other equipment as well as living, non-living and mixed things (with fondness). Therefore, Gautam ! It is said that Asur Kumars are equipped with faculties of action (aarambh; sinful activity) and acquisition (parigraha possession). It is not that they are without these 5 faculties (anaarambh and aparigraha). The same should be repeated for other divine beings (from Naag Kumars) up to Stanit Kumars.
卐
卐
३२. एगिंदिया जहा नेरइया ।
३२. नैरयिकों के (सूत्र ३०) कथन की तरह ही एकेन्द्रियों के विषय में कहना चाहिए ।
32. What has been stated about infernal beings (aphorism 30 ) should be repeated for one-sensed beings.
Jain Education International
(122)
फ्र
For Private & Personal Use Only
Bhagavati Sutra (2)
卐
5
5
फ्र
फ्र
www.jainelibrary.org