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+ matter),kshetra-sthaan-ayu (period of existence at a place), avagahana卐 sthaan-ayu (period of existence in a shape) and bhaava-sthaan-ayu + (period of existence of properties) ?
(Ans.] Gautam ! Of these minimum is kshetra-sthaan-ayu (period of $ existence at a place), innumerable times more than that is avagahana
sthaan-ayu (period of existence in a shape), innumerable times more
than that is dravya-sthaan-ayu (period of existence as matter), and 5 innumerable times more than that is bhaava-sthaan-ayu (period of \i existence of properties).
Verse : To be stated is the comparative maximum and minimum of kshetra-sthaan-ayu, avagahana-sthaan-ayu, dravya-sthaan-ayu and 4 bhaava-sthaan-ayu. Of these minimum is kshetra-sthaan-ayu and $1 following three are innumerable times more than the preceding in the
said order. ॐ विवेचन : द्रव्यस्थानायु आदि का स्वरूप-पुद्गल द्रव्य का परमाणु, द्विप्रदेशिकादि स्कन्ध आदि रूप में ॐ अवस्थान रहने की आयु अर्थात् स्थिति द्रव्यस्थानायु है। एकप्रदेशादि क्षेत्र में पुद्गलों का अवस्थान क्षेत्रस्थानायु है। - इसी प्रकार पुद्गलों के आधार-स्थलरूप एक प्रकार का आकार अवगाहना है, इस अवगाहित किये हुए
परिमित क्षेत्र में पुद्गलों का रहना अवगाहना स्थानायु है। द्रव्य के विभिन्न रूपों में परिवर्तित होने पर भी द्रव्य के ॐ आश्रित श्यामत्व आदि गुणों का जो अवस्थान रहता है, उसे भावस्थानायु कहते हैं।
क्षेत्र व अवगाहना में अन्तर : पुद्गल जहाँ रहता है, वह 'क्षेत्र' तथा ठहरे हुए पुद्गल का एक प्रकार आकार के 'अवगाहना' है।
___ द्रव्यस्थानायु आदि के अल्प-बहुत्व का रहस्य-द्रव्यस्थानायु आदि चारों में क्षेत्र (आकाश) अमूर्तिक होने से तथा उसके साथ पुद्गलों के बंध का कारण 'स्निग्धत्व' न होने से पुद्गलों को क्षेत्रावस्थानकाल (अर्थात्- क्षेत्रस्थानायु) सबसे थोड़ा बताया है। एक क्षेत्र में रहा हुआ पुद्गल दूसरे क्षेत्र में चला जाता है, तब भी उसकी 5 'अवगाहना' वही रहती है, इसलिए क्षेत्रस्थानायु की अपेक्षा अवगाहनास्थागयु असंख्यगुणा है। संकोचविकासरूप अवगाहना बदल जाने पर भी द्रव्य दीर्घकाल तक रहता है; इसलिए अवगाहनास्थानायु की अपेक्षा
स्थानायु असंख्यगुणा है। संघात और भेद के कारण स्कन्ध की द्रव्य राशि में अन्तर आ जाने पर भी भाव वर्ण आदि गुणों की स्थिति चिरकाल तक बनी रहती है, सब गुणों का नाश नहीं होता; इसलिए द्रव्यस्थानायु की
अपेक्षा 'भावस्थानायु' असंख्यगुणा है। (वृत्ति पत्रांक २३५, हिन्दी विवेचन, भाग २, पृ. ८८४) ____Elaboration-Definitions of dravya-sthaan-ayu etc.-The period of ! existence in any form of matter including paramanu (ultimate particle
and aggregates of two or more is called dravya-sthaan-ayu (period of existence as matter). The period of occupation of a specific area in space, such as a space-point is called kshetra-sthaan-ayu (period of existence at a place). In the same way, while occupying an area in space the matter
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|पंचम शतक : सप्तम उद्देशक
(119)
Fifth Shatak : Seventh Lesson
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