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[ उ. ] गौतम ! जघन्यतः एक समय तक और उत्कृष्टतः आवलिका के असंख्येय भाग तक रहता है। २१. जिस प्रकार एक गुण काले पुद्गल के विषय में कहा है, उसी तरह अशब्द - परिणत पुद्गल की कालावधि के विषय में कहना चाहिए।
20. [Q.] Bhante ! In terms of time how long does a paramanu-pudgal (ultimate particle of matter) turned into sound (shabd) exist (as sound) ? [Ans.] Gautam ! It exists (in the same form) for a minimum of one Samaya and a maximum of immeasurable fraction of Avalika.
21. What has been stated about one unit of black colour should be repeated for matter not turned into sound.
विवेचन : पुद्गल का एक रूप में अवस्थान सम्बन्धी नियम- उक्त सूत्रों का सार यह है कि - ( १ ) परमाणु - परमाणु रूप में अधिकतम असंख्यात काल तक रह सकता है, उसके पश्चात् वह स्कन्ध रूप में बदल जाता है। यही नियम स्कन्ध पर भी लागू होता है। (२) गुणांश में परिवर्तन-वर्ण, गंध, रस और स्पर्श में पुद्गल के गुण हैं। काला वर्ण एक गुण (क्वालिटी - Quality ) है, उसमें अनन्त गुणांश (Units- यूनिट्स) सम्भव हो सकते हैं। (३) सकम्प - अकम्प - पुद्गल सप्रकम्प अधिक समय तक नहीं रह सकता। वह जघन्य एक समय, उत्कृष्ट आवलिका का असंख्यातवाँ भाग तक, जबकि अप्रकम्प जघन्य एक समय, उत्कृष्ट असंख्यात काल तक रह सकता है। (वृत्ति पत्रांक २३५)
Elaboration-Life of matter in one state-The gist of the aforesaid aphorisms is—(1) Paramanu ( ultimate particle) remains in its free state as a paramanu for a maximum of immeasurable period after which it essentially turns into an aggregate (skandh). The same rule applies to skandh as well. (2) Change in units of properties-colour, smell, taste and touch are attributes of matter. Black colour is an attribute or a property and it can have one to infinite units (gunamsh) in terms of intensity. (3) Vibrant and still-matter cannot remain in the state of vibration for a long period-only for a minimum of one Samaya and maximum of innumerable fraction of an Avalika. Whereas in the state of non-vibration the range is minimum of one Samaya and maximum of immeasurable time. (Vritti, leaf 235)
विविध पुद्गलों का अन्तरकाल INTERVENING PERIOD OF RE-TRANSFORMATION
२२. [ प्र. ] परमाणुपोग्गलस्स णं भंते अंतरं कालओ केवच्चिरं होइ ? [उ. ] गोयमा ! जहन्त्रेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं ।
२२. [प्र.] भगवन् ! परमाणु- पुद्गल का काल की अपेक्षा से कितना लम्बा अंतर होता है ? अर्थात्-जो पुद्गल अभी परमाणु रूप है उसे अपना परमाणुपन छोड़कर, स्कन्धादि रूप में परिणत होने पर, तथा पुनः उसे परमाणुपन प्राप्त करने में कितने लम्बे काल का अन्तर ( अन्तरकाल) होता है ?) [ उ. ] गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल का अन्तर होता है।
पंचम शतक : सप्तम उद्देशक
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Fifth Shatak: Seventh Lesson
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