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३४. [प्र. १ ] भगवन् ! क्या केवली भगवान आदानों (इन्द्रियों) से जानते और देखते हैं ? [उ. ] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
34.[Q.1] Bhante! Does Kevali Bhagavan know and see with the help of sense organs (aadaan or indriya)?
(Ans.] Gautam ! That is not correct. [प्र. २ ] से केणट्टेणं जाव केवली णं आयाणेहिं न जाणति, न पासति ?
[उ. ] गोयमा ! केवली णं पुरथिमेणं मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ जाव निबुडे दंसणे केवलिस्स। से तेणटेणं। __ [प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से केवली भगवान इन्द्रियों से नहीं जानते-देखते?
[उ. ] गौतम ! केवली भगवान पूर्व दिशा में मित (सीमित) भी जानते-देखते हैं, अमित (असीम) भी जानते-देखते हैं, यावत् केवली भगवान का (ज्ञान और) दर्शन निरावरण है। इस कारण से कहा गया है कि वे इन्द्रियों से नहीं जानते-देखते। (अपितु प्रत्यक्ष ज्ञान से जानते-देखते हैं) ___ [Q. 2] Bhante ! What are the reasons that Kevali Bhagavan does not know and see with the help of sense organs ?
[Ans.] Gautam ! Kevali Bhagavan knows and sees limited (mit) as well as unlimited (amit) in the east... and so on up to... the knowledge 5 and perception of Kevali Bhagavan is totally free of any veils. That is why it is said that Kevali Bhagavan does not know and see with the help of sense organs. (In fact, he knows and sees directly.) केवली भगवान का अस्थिर काययोग VIBRANT BODY OF OMNISCIENT __३५. [प्र. १ ] केवली णं भंते ! अस्सिं समयंसि जेसु आगासपदेसेसु हत्थं वा पायं वा बाहं वा ऊरं वा ओगाहित्ता णं चिट्ठति, पभू णं भंते ! केवली सेयकालंसि वि तेसु चेव आगासपदेसेसु हत्थं वा जाव
ओगाहित्ताणं चिट्ठित्तए ? __ [उ. ] गोयमा ! णो इणठे समठे।
३५. [प्र. १] भगवन् ! केवली भगवान इस समय (वर्तमान) में जिन आकाश-प्रदेशों पर अपने " हाथ, पैर, बाहू और उरू (जंघा) को अवगाहित (स्पर्श) करके रहते हैं, क्या श्रेयकाल-(भविष्यकाल) में भी वे उन्हीं आकाशप्रदेशों पर अपने हाथ आदि को अवगाहित करके रह सकते हैं ?
[उ. ] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
35. [Q. 1) Bhante ! Does Kevali Bhagavan, who occupies certain spacepoints with his hands, legs, arms and thighs at the present moment,
5F 555听听听听听听听听听听听听听听听 5 55 5 5F 55 5 55 555 听听听听听听听听听听听听听听听听
| भगवती सूत्र (२)
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Bhagavati Sutra (2) 355555555555555555555555555555550
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