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32. [Q.1] Bhante ! Are the Anuttaraupapatik gods capable of knowing and seeing the answers provided by Kevali Bhagavan to the meaning...
and so on up to... grammar asked by them ? 4 [Ans.] Yes, Gautam ! They are. .
[प्र. २ ] से केणठेणं जाव पासंति ?
[उ. ] गोयमा ! तेसि णं देवाणं अणंताओ मणोदव्ववग्गणाओ लद्धाओ पत्ताओ अभिसमनागताओ भवंति। से तेणट्टेणं जं णं इहगते केवली जाव पासंति त्ति।
[प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा किस कारण से (कहा जाता है कि वहाँ रहे हुए अनुत्तरौपपातिक देव, यहाँ रहे हुए केवली के द्वारा प्रदत्त उत्तर को) जानते-देखते हैं ?
[उ.] गौतम ! उन देवों को अनन्त मनोद्रव्य-वर्गणा उपलब्ध हैं, प्राप्त हैं, अभिसमन्वागत ॐ (अभिमुख समानीत) हैं। इस कारण से यहाँ विराजित केवली भगवान द्वारा कथित अर्थ, हेतु आदि को ॐ वे वहाँ रहे हुए ही जान-देख लेते हैं।
[Q.2] Bhante ! Why is it said that (Anuttaraupapatik gods capable of knowing and) seeing the answers provided by Kevali Bhagavan to the meaning... and so on up to... grammar asked by them).
[Ans.) Gautam ! Those gods possess and have at their command an infinite manodravya-vargana (units of mental or neuronic capacity). ki That is why they know and see the meaning... and so on up to... grammar asked by them provided by Kevali Bhagavan from here).
३३. [प्र. ] अणुत्तरोबवाइया णं भंते ! देवा किं उदिण्णमोहा उवसंतमोहा खीणमोहा ? [उ. ] गोयमा ! णो उदिण्णमोहा, उवसंतमोहा, नो खीणमोहा। ३३. [प्र. ] भगवन् ! क्या अनुत्तरौपपातिक देव उदीर्णमोह हैं, उपशान्तमोह हैं, अथवा क्षीणमोह हैं ? [उ. ] गौतम ! वे उदीर्णमोह नहीं हैं, उपशान्तमोह हैं, क्षीणमोह नहीं हैं।
33. [Q.] Bhante ! Are the Anuttaraupapatik gods with fruited attachment (udirna moha), pacified attachment (upashant moha) or destroyed attachment (ksheen moha)?
(Ans.] Gautam ! They are not with fruited attachment (udirna moha) but with pacified attachment (upashant moha) and also not with 41 destroyed attachment (ksheen moha).
विवेचन : अनुत्तरौपपातिक देवों का मनोद्रव्य-सामर्थ्य-अनुत्तरौपपातिक देवों के अवधिज्ञान का विषय सम्भिन्न-लोकनाड़ी-(लोकनाड़ी से कुछ कम) है। जो अवधिज्ञान लोकनाड़ी का ग्राहक (ज्ञाता) होता है, वह असीम मनोवर्गणा का ग्राहक होता ही है; क्योंकि जिस अवधिज्ञान का विषय लोक का संख्येय भाग होता है,
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Bhagavati Sutra (2) | 5 555555555555555558
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