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[उ. ] हंता, पभू।
३१. [प्र. १ ] भगवन् ! क्या अनुत्तरौपपातिक (अनुत्तरविमानों में उत्पन्न हुए) देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, (मनुष्यलोक में) रहे हुए केवली के साथ आलाप-(एक बार बातचीत) और संलाप-(बारबार बातचीत) करने में समर्थ हैं ?
[उ.] गौतम ! हाँ, (वे ऐसा करने में) समर्थ हैं।
31. [Q. 1] Bhante ! Are the Anuttaraupapatik gods (those born in Anuttar vimaans) capable of communicating (aalaap) and discussing (samlaap) from there with the Kevali (omniscient) who is here (on the earth)?
[Ans.) Yes, Gautam ! They are. [प्र. २ ] से केणट्टेणं जाव पभू णं अणुत्तरोववाइया देवा जाव करेत्तए ?
[उ. ] गोयमा ! जं णं अणुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा अट्टं वा हेउं वा पसिणं वा कारणं वा वागरणं वा पुच्छंति, तं णं इहगए केवली अटुं वा जाव वागरणं वा वागरेति। से तेणट्टेणं०। ___ [प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि अनुत्तरौपपातिक देव आलाप और संलाप करने में समर्थ हैं ?
[उ. ] हे गौतम ! अनुत्तरौपपातिक देव अपने स्थान पर रहे हुए ही, जो अर्थ, हेतु, प्रश्न, कारण अथवा व्याकरण (व्याख्या) पूछते हैं, उसका उत्तर यहाँ रहे हुए केवली भगवान देते हैं। इस कारण से यह कहा गया है कि अनुत्तरौपपातिक देव यावत् आलाप-संलाप करने में समर्थ हैं।
[Q.2] Bhante ! Why is it said that Anuttaraupapatik gods... and so on up to... are capable of communicating and discussing (with the Kevali).
(Ans.] Gautam ! When the Anuttaraupapatik gods from their celestial vehicles ask some meaning, cause, question, reason or grammar (elaboration) then Kevali Bhagavan provides them the answer from here. That is why it is said that Anuttaraupapatik gods... and so on up to... are capable of communicating and discussing (with the Kevali).
३२. [प्र. १ ] जं णं भंते ! इहगए चेव केवली अटुं वा जाव वागरेइ तं णं अणुत्तरोववाइया देवा तत्थगया चेव समाणा जाणंति, पासंति ?
[उ.] हंता, जाणंति पासंति।
३२. [प्र. १ ] भगवन् ! केवली भगवान यहाँ रहे हुए जिस अर्थ, यावत् व्याकरण का उत्तर देते हैं, क्या उस उत्तर को वहाँ रहे हुए अनुत्तरौपपातिक देव जानते-देखते हैं ? __ [उ. ] हाँ, गौतम ! वे जानते-देखते हैं।
Fifth Shatak : Fourth Lesson
पंचम शतक : चतुर्थ उद्देशक
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