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4. (Q.) Bhante ! Does a jiva (living being/soul) experience life-span determined by self-acquired karmas ?
(Ans.) He experiences some and does not experiences some. Like the two statements about misery-causing karmas, two statements in context of singular number and plural number should be read about life-span determining karma. In context of singular it should be read up to Vaimaniks and same should be done in context of plural.
विवेचन : उक्त तीनों सूत्रों का सार यह है कि-प्राणी स्वयं ही स्वकृतकर्म के फलस्वरूप सुख या दुःख भोगता है। आयुष्यकर्म का फल भी एक के बदले दूसरा नहीं भोग सकता। हाँ, जिस साता-असातावेदनीय आदि या ॐ आयुष्यकर्म का फल कदाचित् वर्तमान में नहीं दिखाई देता, उसका कारण यह है कि वर्तमान में वे कर्म उदय में .
नहीं आये हुए (अनुदय-अवस्था में) हैं, जब वे उदयावस्था में आते हैं, तभी फल देते हैं। 451 Elaboration--The gist of the aforesaid three aphorisms is that a being
suffers pleasure or pain due to self-acquired karmas. The consequences of even the life-span determining karma acquired by one person cannot be suffered by another. It is true that consequences of some pleasure and
pain causing or life-span determining karmas may not be apparent at 4 the present moment. The reason for this is that these karmas have not 4
undergone fruition at present (i.e. they are in a dormant state). Karmas provide fruits only when they fructify. चौबीस दंडक में समानत्व चर्चा [ नैरयिक ] SIMILARITIES IN TWENTY FOUR DANDAKS (INFERNAL BEINGS)
५. [प्र. १ ] नेरइया णं भंते ! सव्वे समाहारा, सव्वे समसरीरा, सम्बे समुस्सास-नीसासा ? [उ. ] गोयमा ! नो इणट्टे समठे।
[प्र. ] से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति-नेरइया नो सब्वे समाहारा, नो सब्बे समसरीरा, नो सब्वे समुस्सास-निस्सासा?
[उ. ] गोयमा ! नेरइया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-महासरीरा य अप्पसरीरा य। तत्थ णं जे ते ॥ महासरीरा ते बहुतराए पोग्गले आहारेंति, बहुतराए पोग्गले परिणामेंति, बहुतराए पोग्गले उस्ससंति, बहुतराए पोग्गले नीससंति, अभिक्खणं आहारेंति, अभिक्खणं परिणामेंति, अभिक्खणं ऊससंति, अभिक्खणं निस्ससंति। तत्थ णं जे ते अप्पसरीरा ते णं अप्पतराए पोग्गले आहारेंति, अप्पतराए पोग्गले परिणामेंति, अप्पतराए पोग्गले उस्ससंति, अप्पतराए पोग्गले नीससंति, आहच्च आहारेंति, आहच्च परिणामेंति, आहच्च उस्ससंति, आहच्च नीससंति। से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-नेरइया नो सब्वे समाहारा जाव नो सव्वे समुस्सास-निस्सासा।
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भगवतीसूत्र (१)
(52)
Bhagavati Sutra (1)
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