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karmas, it is said that he suffers some and does not suffer some. The same is true for all the twenty four Dandaks (places of suffering) up to Vaimanik Devas.
३. [प्र. १ ] जीवा णं भंते ! सयंकडं दुक्खं वेदेति ? [उ. ] गोयमा ! अत्थेगइयं वेदेति, अत्थेगइयं णो वेदेति । [प्र. २ ] से केणट्टेणं ? [उ. ] गोयमा ! उदिण्णं वेदेति, नो अणुदिण्णं वेदेति, से तेणठेणं एवं जाव वेमाणिया। ३. [प्र. १ ] भगवन् ! क्या (बहुत-से) जीव स्वयंकृत दुःख भोगते हैं ? [उ. ] गौतम ! किसी कर्म (दुःख) को भोगते हैं, किसी को नहीं भोगते। [प्र. २ ] भगवन् ! इसका क्या कारण है?
[उ. ] गौतम ! उदीर्ण (कर्म) को भोगते हैं, अनुदीर्ण को नहीं भोगते, इस कारण ऐसा कहा गया है। इस प्रकार यावत् नैरयिक से लेकर वैमानिक तक चौबीसों दण्डकों के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर समझ लेना चाहिए।
3. [Q. 1] Bhante ! Do (many) jivas (living beings/souls) suffer misery caused by self-acquired karmas ?
(Ans.) They suffer some and do not suffer some. [Q.2] Bhante ! Why do you say so?
[Ans.] Gautam ! They suffer the fructified (udirna) misery-causing karmas and do not suffer the unfructified (anudirna) misery-causing karmas. That is why it is said that they suffer some and do not suffer some. The same is true for all the twenty four Dandaks (places of suffering) from infernal beings up to Vaimanik Devas. आयु-वेदन चर्चा LIFE-SPAN
४. [प्र. ] जीवे णं भंते ! सयंकडं आउयं वेदेति ?
[उ. ] गोयमा ! अत्थेगइयं वेदेति जहा दुक्खेणं दो दंडगा तहा आउएण वि दो दंडगा एगत्तपोहत्तिया; एगत्तेणं जाव वेमाणिया, पुहत्तेण वि तहेव।
४. [प्र. ] भगवन् ! क्या जीव स्वयंकृत आयु को भोगता है ?
[उ. ] गौतम ! किसी को भोगता है, किसी को नहीं भोगता। जैसे-दुःख-कर्म के विषय में दो दण्डक कहे हैं, उसी प्रकार आयुष्य (कर्म) के सम्बन्ध में भी एकवचन और बहुवचन वाले दो दण्डक कहने चाहिए। एकवचन से यावत् वैमानिकों तक कहना, इसी प्रकार बहुवचन से भी (वैमानिकों) तक कहना चाहिए।
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प्रथम शतक : द्वितीय उद्देशक
(51)
First Shatak : Second Lesson
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