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5 वितकिण्णा उबत्थडा संथडा फुडा अवगाढगाढा सिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणा चिट्ठति । एरिसगाणं फ्र
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卐 गोतमा ! तेसिं वाणमंतराणं देवाणं देवलोगा पण्णत्ता से तेणद्वेणं गोतमा ! एवं बुच्चति - जीवे णं अस्संजए जाव देवे सिया ।
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5 वाला, यमल (समान श्रेणी के) वृक्षों वाला, युगल वृक्षों वाला, फल-फूल के भार से नमा हुआ, फल के
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फ धारण करने वाला अशोकवन, सप्तपर्णवन, चम्पकवन, आम्रवन, तिलक वृक्षों का वन, तुम्बे की लताओं
[प्र. २ ] भगवन् ! उन वाणव्यन्तर देवों के देवलोक किस प्रकार के होते हैं ?
[ उ. २ ] गौतम ! जैसे इस मनुष्यलोक में नित्य कुसुमित (सदा फूला हुआ), मयूरित (मौर
पुष्पविशेष वाला), लबकित ( कोंपलों वाला), फूलों के गुच्छों वाला, लतासमूह वाला, पत्तों के गुच्छों
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आकीर्ण - व्याप्त, व्याकीर्ण - विशेष व्याप्त, एक-दूसरे पर आच्छादित, परस्पर मिले हुए, हलके प्रकाश
वाले, अत्यन्त अवगाढ़ श्री - शोभा से अतीव-अतीव सुशोभित रहते हैं। गौतम ! उन वाणव्यन्तर देवों के
5 स्थान देवलोक इसी प्रकार के हैं। इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि असंयत जीव मरकर यावत्
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कोई देव होता है और कोई देव नहीं होता ।
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भार से झुकने की प्रारम्भिक अवस्था वाला, विभिन्न प्रकार की बालों और मंजरियों रूपी मुकुटों को
का वन, वटवृक्षों का वन, क्षत्रोघवन, अशनवृक्षों का वन, सन (पटसन) वृक्षों का वन, अलसी के पौधों
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का वन, कुसुम्ब वृक्षों का वन, सफेद सरसों का वन, दुपहरिया (बन्धुजीवक) वृक्षों का वन, इत्यादि वन
फ शोभा से अतीव-अतीव उपशोभित होता है; इसी प्रकार वाणव्यन्तर देवों से और उनकी देवियों से 5
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[Ans.] Gautam ! Just as in this world of human beings there are
forests of Ashoka trees, Saptaparna trees, Champak trees, mango trees, Tilak trees, gourd creepers, banyan trees, Kshatrogh trees, Ashan trees, hessian trees, Alasi plants, Kusumb trees, white mustard trees, Bandhujivak trees and many other trees resplendent and always laden
with flowers, buds, leaves, clusters of flowers and bunches of leaves;
卐 greenery, swaying gracefully in the wind; some stand in a row and others
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[Q. 2] Bhante ! What is the description of the divine realm belonging फ to the Vanavyantar Devas?
embraced by creepers like Jasmine and heavy with the flourishing
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卐 leaves (vinamit); and some even touch the ground due to excessive
always in pairs; many are bent low due to the load of flowers, fruits and
weight; and they appear as if they have plumed crests in the form of
beautiful buds and danglers; likewise is the dense, shaded dimly lit and enchantingly beautiful divine realm of the Vanavyantar gods inhabited
and crowded by these gods and goddesses. Gautam ! Such is the divine
realm of the Vanavyantar gods. For this reason it is said that some of the
indisciplined (asamyat) after death reincarnate as gods and some do not.
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卐 भगवतीसूत्र (१)
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Bhagavati Sutra (1) ㄓ
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