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[ उ. ] गौतम ! जो ये जीव ग्राम, आकर (खान), नगर निगम (व्यापारिक केन्द्र), राजधानी, खेट (खेड़ा), कर्बट (खराब नगर), मडम्ब (चारों ओर ढाई-ढाई कोस तक बस्ती से रहित बस्ती), द्रोणमुख (बन्दरगाह जलपथ-स्थलपथ से युक्त बस्ती), पट्टण (पत्तन - मण्डी, जहाँ देश-देशान्तर से आया हुआ माल उतरता है), आश्रम ( तापस आदि का स्थान), सन्निवेश (घोष आदि लोगों का आवास-स्थान) आदि स्थानों में अकाम तृषा (प्यास) से, अकाम क्षुधा से, अकाम ब्रह्मचर्य से, अकाम शीत, आतप तथा डाँसमच्छरों के काटने के दुःख को सहने से, अकाम अस्नान, पसीना, जल्ल ( धूल लिपट जाना), मैल तथा पंक से होने वाले परिदाह से थोड़े समय तक या बहुत समय तक अपने आप को क्लेशित करते हैं; वे अपने आप को (पूर्वोक्त प्रकार से ) क्लेशित करके मृत्यु के समय पर मरकर वाणव्यन्तर देवों के किसी देवलोक में देवरूप से उत्पन्न होते हैं।
12. [Q. 1] Bhante ! When the indisciplined (asamyat ), non-abstinent (avirat) and he who has neither atoned for nor given up sinful acts passes away from this world, does he reincarnate as a divine being?
[Ans.] Gautam ! Some soul becomes a god and some does not.
[Q.] Bhante ! What is the reason for some being, after passing away from this world, reincarnating as a god and some not?
[Ans.] Gautam ! These beings living in gram ( village), aakar (settlement near a mine), nagar (city), nigam (trade center ), capital, khet (kraal), karbat (market), madamb (borough), dronmukh (hamlet), pattan (harbour), ashram ( hermitage) and sannivesh (temporary settlement) suffer pain for a short or a long period without volition due to thirst, hunger, celibacy, cold, heat and insect-bite ( mosquitos, wasps etc.) as well as discomfort due to not bathing, sweating, smearing of dust, dirt and slime. Such beings after said sufferance pass away at the time of death and reincarnate as gods in some divine realm of Vanavyantar Devas (interstitial gods).
वाणव्यन्तर देवलोक का स्वरूप DESCRIPTION OF VANAVYANTAR DEV LOK
[प्र. २] केरिसा णं भंते ! तेसिं वाणमंतराणं देवाणं देवलोगा पण्णत्ता ?
[उ. ] गोयमा ! से जहानामए इहं असोगवणे इ वा, सत्तावण्णवणे इ वा, चंपगवणे इ वा, चूतवणे इ वा, तिलगवणे इवा, लउयवणे इ वा, णिग्गोहवणे इ वा, छत्तोववणे इ वा, असणवणे इ वा, सणवणे इ वा, अयसिवणे इ वा, कुसुंभवणे इ वा, सिद्धत्थवणे इ वा, बंधुजीवगवणे इ वा णिच्चं कुसुमित माइत लवथव गुलुइत गुच्छित जमलित जुवलित विणमित पणमित सुविभत्त पिंडमंजरिवडेंसगधरे सिरीए अई अईव उवसोभेमाणे उवसोभेमाणे चिट्ठति, एवामेव तेसिं वाणमंतराणं देवाणं देवलोगा जहत्रेणं दसवासहस्सट्ठितीएहिं उक्कोसेणं पलिओवमट्टितीएहिं बहूहिं वाणमंतरेहिं देवेहि य देवीहि य आइण्णा
प्रथम शतक : प्रथम उद्देशक
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First Shatak: First Lesson
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