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विशेष शब्दों की व्याख्या : असंयत-असाधु या संयमरहित । अविरत - प्राणातिपात आदि पापों से विरतिरूप व्रतरहित। अप्रतिहत-प्रत्याख्यातपापकर्मा - ( १ ) जिसने भूतकालीन पापों को निन्दा गर्हा आदि के द्वारा पाप नष्ट (निराकृत) नहीं किया है तथा जिसने भविष्यकालीन पापों का प्रत्याख्यान - त्याग नहीं किया है। अकामकर्मनिर्जरा की अभिलाषा के बिना जो कष्ट सहन आदि किया जाये, उससे होने वाली निर्जरा अकामनिर्जरा है। मोक्षप्राप्ति की कामना - स्वेच्छा या उद्देश्य से ज्ञानपूर्वक जो निर्जरा की जाती है, वह सकामनिर्जरा कहलाती है। अकामनिर्जरा वाले वाणव्यन्तरादि देव होते हैं, जबकि सकामनिर्जरा वाले साधक वैमानिक देवों की उत्तम से उत्तम स्थिति प्राप्त करके मोक्ष की भी आराधना कर सकते हैं। वाणव्यन्तर- वनविशेष में उत्पन्न होने अर्थात् बसने और वहीं क्रीड़ा करने वाले देव ।
TECHNICAL TERMS
Asamyat-ignoble or indisciplined. Avirat-non-abstinent or one who has not taken vows of abstaining from sinful acts including that of nonkilling. Apratihat-pratyakhyat-paapkarma-one who has not atoned for past sins by self-criticism and remorse, and not resolved to abstain from sins in future. Akam-the natural shedding of karmas due to sufferance without an intent of shedding karmas is called akam nirjara. The shedding of karmas done voluntarily with the intent of getting liberated is called sakam nirjara. Those who do akam nirjara reincarnate as Vanavyantar gods and those who do sakam nirjara reincarnate as higher Vaimanik gods and may even proceed on the path of liberation. Vanavyantar-divine beings born, dwelling and enjoying in specific
forests.
सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति भगवं गोतमे समणं भगवं महावीरं वंदति नम॑सति वंदित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति ।
॥ पढमे सए : पढमो उद्देसो समत्तो ॥
हे भगवन् ! 'यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है; ऐसा कहकर भगवान गौतम श्रमण भगवान महावीर को वन्दना करते हैं, नमस्कार करते हैं; वन्दना - नमस्कार करके संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते हैं।
॥ प्रथम शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त ॥
Bhante! "Indeed that is so. Indeed that is so." With these words ascetic Gautam paid homage and obeisance to Bhagavan Mahavir and resumed his activities enkindling (bhaavit) his soul with asceticdiscipline and austerities.
END OF THE FIRST LESSON OF THE FIRST SHATAK
प्रथम शतक : प्रथम उद्देशक
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First Shatak: First Lesson
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