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(Ans.) Gautam ! Besides ayu-karma (life-span determining karma) a 45 samurit ascetic transforms karmas of seven species from those having strong bondage into those having weak bondage; those having long duration into those having short duration; those having high intensity into those having low intensity; and those having more space-points into those having less space-points. He does not acquire the bondage of ayukarma. He also discontinues to acquire asatavedaniya karma (karma causing pain) and (thus) crosses the endless, infinite, extended forest of cycles of rebirth having four genuses. Gautam ! For this reason it is said that a samvrit ascetic gets perfected (Siddha), ... and so on up to... ends all miseries.
विशेष शब्दों की व्याख्या : जिस साधु ने अनगार होकर हिंसादि आस्रवद्वारों को रोका नहीं है वह असंवृत है। आस्रवद्वारों का निरोध करके संवर की साधना करने वाला मुनि संवृत अनगार है। ये छठे गुणस्थान (प्रमत्तसंयत) से लेकर चौदहवें गुणस्थानवर्ती तक होते हैं। संवृत अनगार दो प्रकार के होते हैं-चरमशरीरी
और अचरमशरीरी। जिन्हें दूसरा शरीर धारण नहीं करना पड़ेगा, वे एकभवावतारी चरमशरीर और जिन्हें ॥ दूसरा शरीर (सात-आठ भव तक) धारण करना पड़ेगा, वे अचरमशरीरी होते हैं। प्रस्तुत सूत्र चरमशरीरी की है अपेक्षा से है। दोनों में अन्तर यह है कि अचरमशरीरी संवृत अनगार उसी भव में मोक्ष भले न जाएँ मगर वे ७-८ भवों में अवश्य मोक्ष जायेंगे ही। इस प्रकार उनकी भव-परम्परा की सीमा ७-८ भवों तक की ही है। अपार्धपुद्गलपरावर्तन की जो परम्परा अन्यत्र कही गई है, वह विराधक की अपेक्षा से समझना चाहिए। ___ 'सिझइ' आदि पाँच पदों का अर्थ और क्रम-अन्तिम जन्म प्राप्त करके जो मोक्षगमनयोग्य होता है, वही सिद्ध (सिद्धिप्राप्त) होता है; बुद्ध तभी कहेंगे जब केवलज्ञान प्राप्त होगा। जो बुद्ध हो जाता है, उसके केवल भवोपग्राही अघातिकर्म शेष रहते हैं, भवोपनाही कर्म को जब वह प्रतिक्षण छोड़ता है, तब मुक्त कहलाता है। भवोपग्राही कर्मों को प्रतिक्षण क्षीण करने वाला वह महापुरुष कर्मपुद्गलों को ज्यों-ज्यों क्षीण करता जाता है, त्यों-त्यों शीतल होता जाता है, इस प्रकार की शीतलता-शांति प्राप्त करना ही निर्वाणप्राप्त करना है। वही जीव अपने भव के अन्त समय में जब समस्त कर्मों का सर्वथा क्षय कर चुकता है, तब अपने समस्त दुःखों का अन्त करता है। अनादिकं (जिसकी आदि न हो), अनवदग्रम् (अन्त से रहित-अनन्त), दीहमद-जिसका अध्व (मार्ग) या अद्धाकाल दीर्घ-लम्बा हो। TECHNICAL TERMS
Asamurit-an ascetic who, after renouncing household, does not put a stop to violence and other sources of inflow of karmas. Samurit-an ascetic who practices samvar by blocking the sources of inflow of karmas. These ascetics are at the sixth to fourteenth Gunasthaan levels. Samurit ascetics are of two kinds-charam-shariri and acharam-shariri. Those who do not have to reincarnate again and are in their last physical body are called charam-shariri and those who have to further reincarnate for seven to eight births are called acharam-shariri. This
प्रथम शतक :प्रथम उद्देशक
(45)
First Shatak: First Lesson
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