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(Ans.] Gautam ! They inhale and exhale in a varied and indeterminate period of time.
[१२-प्र. ३ ] पुढविक्काइया आहारट्ठी ? [उ. ] हंता, आहारट्ठी। [१२-प्र. ३ ] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव क्या आहार के अभिलाषी होते हैं ? [उ. ] हाँ, गौतम ! वे आहारार्थी होते हैं।
[12–Q. 3] Bhante ! Have the earth-bodied beings desire for food (intake)?
[Ans.] Yes, Gautam ! They have the desire for food (intake). [१२-प्र. ४ ] पुढविक्काइयाणं केवइकालस्स आहारट्टे समुप्पज्जइ ? [उ. ] गोयमा ! अणुसमयं अविरहिए आहारट्टे समुप्पज्जइ। [१२-प्र. ४ ] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है ? [उ. ] हे गौतम ! (उन्हें) प्रतिसमय निरन्तर आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है।
[12-Q. 4] Bhante ! After what interval of time the earth-bodied beings have desire for food (intake)?
[Ans.] Gautam ! Their desire for intake rises every moment. __ [१२-प्र. ५ ] पुढविक्काइया किं आहारं आहारेंति ?
[उ. ] गोयमा ! दव्वओ जहा नेरइयाणं जाव निव्वाघाएणं छद्दिसिं; वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं, सिय चउद्दिसिं सिय पंचदिसिं। वण्णओ काल-नील-लोहित-हालिद्द-सुक्कलाणि। गंधओ सुन्भिगंध २, रसओ तित्त ५, फासओ कक्खड ८ सेसं तहेव।
[प्र. ] नाणत्तं कतिभागं आहारेंति ? कइभागं फासादेंति ? [उ. ] गोयमा ! असंखिज्जइभागं आहारेंति, अणंतभागं फासादेंति जाव। [प्र. ] ते णं तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति ?
[उ. ] गोयमा ! फासिंदियवेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति। सेसं जहा नेरइयाणं जाव चलियं कम्म निज्जरेंति, नो अचलियं कम्मं निज्जरेंति।
[१२-प्र. ५ ] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव क्या (किसका) आहार करते हैं ? ॐ [उ. ] गौतम ! वे द्रव्य से अनन्तप्रदेशी द्रव्यों का आहार करते हैं, इत्यादि (आहार-विषयक) सब 5 बातें नैरयिकों के समान जानना चाहिए। यावत् पृथ्वीकायिक जीव व्याघात न हो तो छहों दिशाओं से 5
__ आहार लेते हैं। व्याघात हो तो कदाचित् तीनों दिशाओं से, कदाचित् चार और कदाचित् पाँच दिशाओं ॐ से आहार लेते हैं। वर्ण की अपेक्षा से काला, नीला, पीला, लाल, हारिद्र (हल्दी जैसा) तथा शुक्ल (श्वेत)
भगवतीसूत्र (१)
(28)
Bhagavati Sutra (1)
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