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卐 [४ से ११ ] एवं सुवण्णकुमाराण वि जाव थणियकुमाराणं ति।
[४ से ११ ] इसी तरह सुपर्णकुमार देवों से लेकर स्तनितकुमार (शेष सभी भवनपति) देवों तक के 9 भी (स्थिति से लेकर चलित कर्मनिर्जरा तक के) सभी आलापक (पूर्ववत्) कह देने चाहिए।
[4 to 11] In the same way all aforesaid statements (from life-span to 4 shedding of chalit karmas) should be read with reference to the
remaining abode dwelling gods (Bhavanavasi) from Suparna Kumars to Stanit Kumars.
विशेष : नागकुमारों की स्थिति के विषय में स्पष्टीकरण-मूल पाठ में उक्त नागकुमारों की देशोन दो पल्योपम की उत्कृष्ट स्थिति उत्तर दिशा के नागकुमारों की होनी चाहिए। दक्षिण दिशावर्ती नागकुमारों की उत्कृष्ट स्थिति 卐 डेढ़ पल्योपम की है।
Note : Clarification about the life-span of Naag Kumars—The maximum life-span of Naag Kumars, slightly less than two Palyopam, 4 mentioned in the original text is for the Naag Kumars residing in the
north; that of the Naag Kumars residing in the south is one and a half Palyopam. पृथ्वीकाय आदि पाँच स्थावर FIVE IMMOBILES INCLUDING EARTH-BODIED BEINGS
[१२-प्र. १ ] पुढविक्काइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता ? [उ. ] गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साइं। [१२-प्र. १ ] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों की स्थिति कितने काल की है? [उ. ] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की है।
[12-Q. 1] Bhante ! What is the life-span of the earth-bodied beings (Prithvikaya jivas) ? | ___ [Ans.] Gautam ! It is minimum Antar-muhurt (less than forty eight minutes) and maximum twenty two thousand years.
[१२-प्र. २ ] पुढविक्काइया केवइकालस्स आणमंति वा ४ ? [उ. ] गोयमा ! वेमायाए आणमंति वा ४। [१२-प्र. २ ] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने काल में श्वास-निःश्वास लेते हैं ? [उ. ] गौतम ! (वे) विमात्रा-विविध या विषम काल में श्वासोच्छ्वास लेते हैं।
[12-Q.2] Bhante ! What is the duration of inhalation, exhalation, breathing in and breathing out of the earth-bodied beings?
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प्रथम शतक : प्रथम उद्देशक
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First Shatak: First Lesson
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