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[2 - Q. 4] Bhante ! After what interval of time Asur Kumars have 5 desire for food (intake)? 5
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[Ans.] Gautam ! The intake of Asur Kumars is of two kinds-aabhog nirvartit (voluntary intake) and anaabhog nirvartit (involuntary intake ). The involuntary intake continues every moment. (But) the desire for voluntary intake comes after a minimum gap of Chaturthabhakta (one day and one night) and a maximum gap of slightly more than one thousand years.
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[ २ - प्र. ५ ] असुरकुमाराणं भंते! किं आहारं आहारेंति ?
[ उ. ] गोयमा ! दव्वओ अनंतपएसियाई दव्बाई, खित्त-काल- भाव पण्णवणागमेणं । सेसं जहा नेरइयाणं जाव।
[प्र.] ते णं तेसिं पोग्गला कीसत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति ?
[उ.] गोयमा ! सोइंदियत्ताए - सुरुवत्ताए सुवण्णत्ताए इट्ठत्ताए इच्छियत्ताए, अभिज्झियत्ताए, उड्ढत्ताए, णो अहत्ताए, सुहत्ताए, दुहत्ता भुज्जो भुज्जो परिणमंति ।
[ २-प्र. ५ ] भगवन् ! असुरकुमार किन पुद्गलों का आहार करते हैं ?
[ उ. ] गौतम ! द्रव्य से अनन्तप्रदेशी द्रव्यों का आहार करते हैं। क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से प्रज्ञापनासूत्र का वही वर्णन जान लेना चाहिए, जो नैरयिकों के प्रकरण में कहा है।
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[ प्र. ] भगवन् ! असुरकुमारों द्वारा आहार किये हुए पुद्गल किस रूप में बार-बार परिणत होते हैं ? [ उ. ] गौतम ! श्रोत्रेन्द्रिय रूप में (चक्षुइन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय एवं ) स्पर्शनेन्द्रिय रूप में, सुन्दर में, सु-वर्ण रूप में, इष्ट रूप में, इच्छित रूप में, मनोहर (अभिलषित) रूप में, ऊर्ध्व रूप में परिणत हैं, अधःरूप में नहीं; सुखरूप में परिणत होते हैं किन्तु दुःखरूप में परिणत नहीं होते ।
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[2 - Q.5] Bhante ! What kind of matter forms the intake of Asur Kumars ?
[Ans.] Gautam ! In terms of entities (dravya) their intake is of entities having infinite space-points (anant pradeshi dravya). In context of area, time and state the description quoted from Prajnapana Sutra in the discussion about infernal beings should be read.
[Q] Bhante! In what form the intake of matter particles by Asur Kumars continues to transform?
[Ans.] Gautam ! They continue to transform into organs of hearing, (vision, smell, taste) and touch. They continue to transform into forms
भगवतीसूत्र ( १ )
(24)
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Bhagavati Sutra (1)
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