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fi (16), undergoing intransigence (17), will undergo intransigence (18). In 45 1 terms of karmic group of matter all these actions apply to two types of $ matter (subtle and gross).
The verse-Like in case of pierced, assimilated, augmented, fructified, experienced and shed all the three periods (tenses) should be considered regarding (the last four) reduction, transformation, partial intransigence and intransigence.
[१-प्र. ७ ] नेरइया णं भंते ! जे पोग्गले तेयाकम्मत्ताए गेण्हंति ते किं तीतकालसमए गेण्हंति ! पडुप्पनकालसमए गेण्हंति, अणागतकालसमए गेण्हंति ? __ [उ. ] गोयमा ! नो तीतकालसमए गेण्हंति, पडुपनकालसमए गेण्हंति, नो अणागतकालसमए गेण्हंति ।
[१-प्र. ७ ] हे भगवन् ! नारक जीव जिन पुद्गलों को तैजस् और कार्मण रूप में ग्रहण करते हैं, उन्हें क्या अतीत काल में ग्रहण करते हैं, वर्तमान काल में ग्रहण करते हैं, अथवा अनागत (भविष्य) 卐 काल में ग्रहण करते हैं ?
[उ. ] गौतम ! वर्तमान काल में ग्रहण करते हैं; अतीत काल में और भविष्य काल में ग्रहण म नहीं करते। न [1-0.7] Bhante ! The matter that the infernal beings ingest in the 45 form of taijas (fiery) particles and karman (karmic) particles; is it done ॐ in the past ? Is it done in the present ? Or is it done in the future? ___[Ans.] Gautam ! They ingest it in the present and not in the past nor in the future.
[१-प्र. ८ ] नेरइया णं भंते ! जे पोग्गले तेयाकम्मत्ताए गहिए उदीरेंति ते किं तीतकालसमयगहिते पोग्गले उदीरेंति ? पडुप्पन्नकालसमयघेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति ? गहणसमयपुरक्खडे पोग्गले उदीरेंति ? ।
[उ. ] गोयमा ! तीतकालसमयगहिए पोग्गले उदीरेंति, नो पुडुप्पनकालसमयघेप्पमाणे पोग्गले उदीरेंति, नो गहणसमयपुरेक्खडे पोग्गले उदीरेंति २। एवं वेदेति ३, निजरेंति ४।
[१-प्र. ८] भगवन् ! नारक जीव तैजस् और कार्मण रूप में ग्रहण किये हुए जिन पुद्गलों की ॐ उदीरणा करते हैं, सो क्या अतीत काल में गृहीत पुद्गलों की उदीरणा करते हैं, या वर्तमान काल में
ग्रहण किये जाते हुए पुद्गलों की उदीरणा करते हैं, अथवा जिनका उदयकाल आगे आने वाला है, ऐसे भविष्य काल विषयक पुद्गलों की उदीरणा करते हैं ?
[उ. ] गौतम ! वे अतीत काल में गृहीत पुद्गलों की उदीरणा करते हैं, (परन्तु) वर्तमान काल में ग्रहण किये जाते हुए पुद्गलों की तथा आगे ग्रहण किये जाने वाले पुद्गलों की उदीरणा नहीं करते। इसी प्रकार 9 (उदीरणा की तरह) अतीत काल में गृहीत पुद्गलों को वेदते हैं और उनकी निर्जरा करते हैं।
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भगवतीसूत्र (१)
(18)
Bhagavati Sutra (1)
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