________________
மிமிததமிழ***************************55
[उ. ] हंता, जाणति पासति ।
७. [ प्र. १ ] से भंते ! [उ.] गोयमा ! तहाभावं जाणति पासति, नो अन्नाभावं जाणति पासति ।
तहाभावं जाणइ पासइ ? अन्नहाभावं जाणति पासति ?
[प्र. २] से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ ?
[उ. ] गोयमा ! तस्स णं एवं भवति एवं खलु अहं रायगिहे नगरे समोहए, समोहण्णित्ता वाणारसीए नगरीए रुवाई जाणामि पासामि, से से दंसणे अविवच्चासे भवति, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चति ।
८. बीओ वि आलावगो एवं चेव, नवरं वाणारसीए नगरीए समोहणा णेयव्वा, रायगिहे नगरे रुवाइं जाणइ पासइ ।
६. [ प्र. ] भगवन् ! वाराणसी नगरी में रहा हुआ अमायी सम्यग्दृष्टि भावितात्मा अनगार, वीर्यलब्धि से, वैक्रियलब्धि से और अवधिज्ञानलब्धि से राजगृह नगर की विकुर्वणा करके क्या राजगृह में विद्यमान रूपों को जानता-देखता है ?
[उ. ] हाँ, गौतम ! ( वह उन रूपों को) जानता - देखता है।
७. [ प्र. १ ] भगवन् ! वह उन रूपों को तथाभाव ( यथार्थ रूप ) से जानता देखता है, अथवा अन्यथाभाव से जानता देखता है ?
-
[ उ. ] गौतम ! वह उन रूपों को तथाभाव से जानता- देखता है, किन्तु अन्यथाभाव (विपरीत रूप ) से नहीं जानता- देखता ।
[प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि वह तथाभाव से उन रूपों को जानता देखता है, अन्यथाभाव से नहीं ?
[ उ. ] गौतम ! उस अनगार के मन में इस प्रकार का विचार, चिन्तन होता है कि 'वाराणसी नगरी में रहा हुआ मैं राजगृह नगर की विकुर्वणा करके वाराणसी के रूपों को जानता देखता हूँ।' इस प्रकार उसका दर्शन अविपरीत ( सम्यक् / यथार्थ ) होता है। गौतम ! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि वह तथाभाव से जानता - देखता है।
८. दूसरा आलापक भी इसी तरह कहना चाहिए। किन्तु विशेष यह है कि विकुर्वणा वाराणसी नगरी की समझनी चाहिए और राजगृह नगर में रहकर वाराणसी के रूपों को जानता - देखता है।
6. [Q.] Bhante ! Can a righteous (samyagdrishti) and amaayi (free of the influence of passions) sagacious ascetic (bhaavitatma anagar), while living in Varanasi city, see and know the make-up of Rajagriha city by creating a transmuted form of Rajagriha city through his potency (virya labdhi), power of transmutation (vaikriya labdhi) and power of extrasensory knowledge (Avadhi-jnana labdhi ) ?
[Ans.] Yes, Gautam ! He (the ascetic) sees the make-up of that city.
भगवतीसूत्र (१)
Bhagavati Sutra (1)
Jain Education International
(488)
நிதிமிததத***************************Y
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org