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तृतीय शतक छठा उद्देशक THIRD SHATAK (Chapter Three) : SIXTH LESSON
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यामागगनगाभ))))))55555555555555555555555555
अनगार
ANAGAR VIRYALABDHI
(POTENCY ACQUISITION BY ASCETIC) 卐 मिथ्यादृष्टि की विकुर्वणा TRANSMUTATION BY THE UNRIGHTEOUS
१. [प्र.] अणगारे णं भंते ! भावियप्पा मायी मिच्छद्दिवी वीरियलद्धीए वेउब्बियलद्धीए ॐ विभंगनाणलद्धीए वाणारसिं नगरिं समोहए, समोहण्णित्ता रायगिहे नगरे रूवाइं जाणति पासति ?
[उ. ] हंता, जाणइ पासइ।।
१. [प्र. ] भगवन् ! भावितात्मा अनगार जो मिथ्यादृष्टि और मायी (कषायवान) है तथा वीर्यलब्धि से, वैक्रियलब्धि से और विभंगज्ञानलब्धि से सम्पन्न है, वह राजगृह नगर में रहा हुआ वाराणसी नगरी ॐ की विकुर्वणा करके क्या राजगृह के (मनुष्य, महल आदि) रूपों को जानता-देखता है ?
[उ. ] हाँ, गौतम ! वह (अनगार) उन वहाँ स्थित रूपों को जानता और देखता है।
1. [Q.] Bhante ! Can a sagacious ascetic (bhaavitatma anagar), who is unrighteous (mithyadrishti), maayi (under influence of passions) and 4
endowed with potency (virya labdhi), power of transmutation (vaikriya 15 labdhi) and power of pervert knowledge (vibhang jnana labdhi), while
ng in Rajagriha city, see and know the make-up (houses and people) of Varanasi city by creating a transmuted form of Rajagriha city.
(Ans.] Yes, Gautam ! He (the ascetic) sees the make-up (houses and people) of that city.
२. [प्र. १] से भंते ! किं तहाभावं जाणइ पासइ ? अन्नहाभावं जाणइ पासइ ? [उ. ] गोयमा ! णो तहाभावं जाणइ पासइ, अन्नहाभावं जाणइ पासइ। [प्र. २ ] से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'नो तहाभावं जाणइ पासइ, अन्नहाभाव जाणइ पासइ ?'
[उ. ] गोयमा ! तस्स णं एवं भवति-एवं खलु अहं रायगिहे नगरे समोहए, समोहण्णित्ता वाणारसीए नगरीए रूवाई जाणामि पासामि, से से दंसणे विवच्चासे भवति, ते तेणटेणं जाव पासति।।
२. [प्र. १ ] भगवन् ! क्या वह उन रूपों को तथाभाव (यथार्थरूप से) जानता-देखता है, अथवा # अन्यथाभाव (विपरीत रूप) से जानता-देखता है ? ___[उ. ] गौतम ! वह तथाभाव से नहीं जानता-देखता, किन्तु अन्यथाभाव से जानता-देखता है।
[प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि वह यथार्थरूप से नहीं जानता-देखता, । किन्तु अन्यथाभाव से जानता-देखता है ?
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तृतीय शतक : छठा उद्देशक
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