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[उ. ] गौतम ! पहले कहे अनुसार जान लेना चाहिए। (अर्थात् ऐसे वैक्रियकृत रूपों से वह सारे
बूद्वीप को ठसाठस भर सकता है।) [२] इसी तरह दोनों ओर यज्ञोपवीत धारण किये हुए पुरुष की ऊ तरह रूपों की विकुर्वणा करने के सम्बन्ध में भी जान लेना चाहिए। + 9.[Q. 1] Bhante ! How many such human-forms on some mission with
a sacred thread on one side a sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) 4 is capable of creating by transmutation (vikurvana)? ___ [Ans.] Gautam ! Here repeat as aforesaid. (He can tightly pack the
e of Jambudveep continent.) [2] The same should be repeated for transmuting of human-forms with sacred threads on both sides.
१०. [प्र. १] से जहानामए केइ पुरिसे एगओपल्हत्थियं काउं चिट्टेज्जा एवामेव अणगारे वि भावियप्पा ?
[उ. ] तं चेव जाव विकुब्बिसु वा ३। [ २ ] एवं दुहओपल्हत्थियं पि।
१०. [प्र. १ ] भगवन् ! जैसे कोई पुरुष एक तरफ पल्हथी (सुखासन) लगाकर बैठे, इसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी (पल्हथी लगाकर बैठे हुए पुरुष के समान) रूप बनाकर स्वयं आकाश में फ़ उड़ सकता है?
[उ. ] गौतम ! पहले कहे अनुसार सब वर्णन जानना चाहिए। [ २ ] इसी तरह दोनों तरफ पल्हथी ॐ लगाने वाले पुरुष के समान रूपविकुर्वणा के सम्बन्ध में जान लेना चाहिए।
10. [Q. 1] Bhante ! As a man sits with one leg folded; likewise can a sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) fly in the sky in the said posture (one leg folded)?
(Ans.] Gautam ! Here repeat all details as aforesaid. [2] The same should be repeated for transmuting of human-forms with both legs folded.
११. [प्र.१] से जहानामए केइ पुरिसे एगओपलियंकं काउं चिद्वेज्जा०? [उ. ] तं चेव जाव विकुबिंसु वा ३।[२] एवं दुहओपलियंकं पि।
११. [प्र. १ ] भगवन् ! जैसे कोई पुरुष एक तरफ पर्यंकासन (पद्मासन या वज्रासन) करके बैठे, म उसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी उस पुरुष के समान रूप-विकुर्वणा करके आकाश में उड़ सकता है ?
[उ. ] गौतम ! (इसका उत्तर भी) पहले कहे अनुसार जानना चाहिए। [ २ ] इसी तरह दोनों तरफ + पर्यंकासन करके बैठे हुए पुरुष के समान रूप-विकुर्वणा करने के सम्बन्ध में जान लेना चाहिए। ॐ 11. [Q. 1] Bhante ! As a man sits in one sided Paryank posture;
likewise can a sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) fly in the sky in the said posture ?
जमध卐5554555555455555555555555555555555555555555
तृतीय शतक : पंचम उद्देशक
(477)
Third Shatak : Fifth Lesson
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