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७. [प्र. १ ] अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू एगओपडागाहत्थकिच्चगयाइं रूवाई विकुवित्तए ?
[उ. ] एवं चेव जाव विकुबिंसु वा ३।[२ ] एवं दुहओपडागं पि।
७. [प्र. १ ] भगवन् ! भावितात्मा अनगार, कार्यवश एक हाथ में पताका लेकर चलने वाले पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ?
[उ. ] गौतम ! यहाँ सब पहले की तरह कहना चाहिए, (अर्थात् वह ऐसे वैक्रियकृत रूपों से समग्र जम्बूद्वीप को ठसाठस भर सकता है) परन्तु इतने रूपों की विकुर्वणा कभी की नहीं। [ २ ] इसी तरह दोनों हाथों में पताका लिए हुए पुरुष के जैसे रूपों की विकुर्वणा के सम्बन्ध में कहना चाहिए। __7.[Q.1] Bhante ! How many such human-forms on some mission with a flag in one of his hands a sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) is capable of creating by transmutation (vikurvana) ?
[Ans.] Gautam ! Here repeat as aforesaid. (He can tightly pack the whole of Jambudveep continent. But in practice he never performed transmutation to this extant.) [2] The same should be repeated for transmuting of human-forms with flags in both hands.
८. [प्र.] से जहानामए केइ पुरिसे एगओजण्णावइयं काउं गच्छेज्जा, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा एगओजण्णोवइयकिच्चगएणं अप्पाणेणं उड्ढे वेहासं उप्पएज्जा ?
[उ. ] हंता, उप्पएज्जा।
८. [प्र. ] भगवन् ! जैसे कोई पुरुष एक तरफ यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करके चलता है, उसी तरह क्या भावितात्मा अनगार भी कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवीत धारण किये हुए पुरुष की तरह स्वयं ऊपर आकाश में उड़ सकता है ?
[उ. ] हाँ, गौतम ! उड़ सकता है।
8. (Q.) Bhante ! As a man goes out with a sacred thread (yajnopaveet) on one side; likewise can a sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) too fly in the sky to go on some mission with a sacred thread on one side ?
[Ans.] Yes, (Gautam !) he can fly.
९. [प्र. १] अणगारे णं भंते ! भावियप्पा केवइयाई पभू एगओजण्णोवइयकिच्चगयाइं रूवाई विकुवित्तए ?
[उ. ] तं चेव जाव विकुलिंसु वा ३। [ २ ] एवं दुहओजण्णोवइयं पि।
९. [प्र. १ ] भगवन् ! भावितात्मा अनगार कार्यवश एक तरफ यज्ञोपवीत धारण किये हुए पुरुष के जैसे कितने रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ?
भगवतीसूत्र (१)
(476)
Bhagavati Sutra (1)
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