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55555555555555555555555555555555559 ज अमायी णं लूहं पाण-भोयणं भोच्चा भोच्चा णो वामेइ, तस्स णं तेणं लूहेणं पाण-भोयणेणं अट्ठि
। अद्विमिंजा पयणूभवंति, बहले मंस-सोणिए, जे वि य से अहाबादरा पोग्गला ते वि य से परिणमंति; तं ॐ जहा-उच्चारत्ताए पासवणत्ताए जाव सोणियत्ताए। से तेणढे णं जाव नो अमायी विकुव्वइ।।
[प्र. २] भगवन ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि मायी अनगार विकर्वणा करता है, . अमायी विकुर्वणा नहीं करता?
[उ. ] गौतम ! मायी (प्रमत्त) अनगार प्रणीत-(घृतादि रस से सरस-स्निग्ध) पान और भोजन 卐 करता है। इस प्रकार बार-बार प्रणीत पान-भोजन करके वह वमन करता है। उस प्रणीत पान-भोजन + से उसकी हड्डियाँ और हड्डियों में रही हुई मज्जा सघन (ठोस) हो जाती है; उसका रक्त और माँस
प्रतनु (पतला-) हो जाता है। उस भोजन के जो यथाबादर-(यथोचित स्थूल) पुद्गल होते हैं, उनका " म उस-उस रूप में परिणमन होता है। यथा-श्रोत्रेन्द्रिय रूप में यावत् स्पर्शेन्द्रिय रूप में तथा हड्डियों, .
हड्डियों की मज्जा, केश, श्मश्रु (दाढ़ी-मूंछ), रोम, नख, वीर्य और रक्त के रूप में वे परिणत होते हैं। ॐ अमायी (अप्रमत्त कषायरहित) मनुष्य तो रूक्ष (रूखा-सूखा) पान-भोजन का सेवन करता है और है + ऐसे रूक्ष पान-भोजन का उपभोग करके वह वमन नहीं करता। उस रूक्ष पान-भोजन (के सेवन) से ॐ उसकी हड्डियाँ तथा हड्डियों की मज्जा प्रतनु (पतली-) होती है और उसका माँस और रक्त गाढ़ा फ़ (सघन) हो जाता है। उस पान-भोजन के जो यथाबादर पुद्गल होते हैं, उनका परिणमन उस-उस रूप ॥
में होता है। यथा-उच्चार (मल), प्रस्रवण (मूत्र), यावत् रक्त आदि रूप में (उनका परिणमन हो जाता ऊ है।) अतः इस कारण से अमायी मनुष्य, विकुर्वणा नहीं करता। निष्कर्ष यह है कि कषाययुक्त प्रमादी + मनुष्य ही विकुर्वणा करता है।
(Q. 2] Bhante ! Why it is said that a maligned person does transformation, a non-maligned person does not do transformation ? ___[Ans.] Gautam ! A maligned ascetic consumes rich food and drinks. He consumes rich food again and again and also vomits it. With that rich food his bones and marrow become thick but his blood and flesh become thin. The gross particles of that food are transformed into various forms including sense organs of hearing... and so on up to... touch, bone, marrow, hair, facial hair, body hair, nails, semen and blood.
A non-maligned ascetic consumes blend and dry food and drinks. Eating such blend food, he does not vomit it. With that blend food his bones and marrow become thin but his blood and flesh become thick. The gross particles of that food are transformed into various forms including stool, urine... and so on up to... blood. For this reason it is said that a non-maligned person does not do transformation but a making need person does.
[३] मायी णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंते कालं करेइ नत्थि तस्स आराहणा।
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तृतीय शतक : चतुर्थ उद्देशक
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Third Shatak : Fourth Lesson
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