________________
四F听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听
म १४. [प्र. ] भगवन् ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना वैभारगिरि
को एक बार या बार-बार उल्लंघ (लाँघ) सकता है ? 卐 [उ. ] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
14. (Q.) Is a sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) capable of flying over Vaibhargiri mountain once or repeatedly without acquiring outside matter particles ?
(Ans.] Gautam ! That is not correct.
१५. [प्र. ] अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभु वेभारं पव्वयं उल्लंघेत्तए वा पलंघेत्तए वा ?
[उ. ] हंता, पभू।
१५. [प्र.] भगवन् ! भावितात्मा अनगार बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके क्या वैभारगिरि का उल्लंघन या प्रलंघन करने में समर्थ है ? __ [उ. ] हाँ, गौतम ! वह वैसा करने में समर्थ है। ___15. [Q.] Is a sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) capable of flying over Vaibhargiri mountain once or repeatedly by acquiring outside matter particles ? ___[Ans. Yes, Gautam ! He is capable of doing that.
१६. [प्र. ] अणगारे णं भंते ! भावियप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता जावइयाइं रायगिहे नगरे रूवाइं एवइयाई विकुवित्ता वेभारं पव्वयं अंतो अणुप्पविसित्ता पभू समं वा विसमं करेत्तए, विसमं वा समं करेत्ताए ?
[उ. ] गोयमा ! णो इणट्टे समठे। १७. एवं चेव बितिओ वि आलावगो; णवरं परियाइत्ता पभू।
१६. [प्र. ] भगवन् ! भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्गलों को ग्रहण किये बिना राजगृह नगर में म जितने भी (पशु पुरुषादि) रूप हैं, उतने रूपों की विकुर्वणा करके तथा वैभार पर्वत में प्रवेश करके क्या
सम पर्वत को विषम कर सकता है ? अथवा विषम पर्वत को सम कर सकता है? ___ [उ. ] गौतम ! भावितात्मा अनगार वैसा नहीं कर सकता।
१७. इसी तरह दूसरा आलापक (सूत्र १६) भी कहना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि वह 卐 (भावितात्मा अनगार) बाहर के पुद्गलों को ग्रहण करके पूर्वोक्त प्रकार से (रूपों की विकुर्वणा आदि) के करने में समर्थ है।
16. (Q.) Without acquiring outside matter particles, is a sagacious ascetic (bhaavitatma anagar) capable of transmuting (vikurvana) into
तृतीय शतक : चतुर्थ उद्देशक
(469)
Third Shatak : Fourth Lesson
955555555555555555555555555555558
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org