________________
5555555555555555555555
seat, advanced where Bhagavan Mahavir was seated and went around him thrice clockwise. After that he paid his homage and obeisance and took his seat neither far from nor very near Bhagavan. Filled with fi adoration for Bhagavan and desire to listen to the sermon, he humbly joined his palms, raised them to his forehead and submitted__विवेचन : इस सूत्र [ ३ ] में गणधर गौतम स्वामी के बाह्य-आभ्यन्तर व्यक्तित्व की झलक बताई है। शारीरिक सुघड़ता सुन्दरता के साथ उनकी उग्र तपःसाधना व ध्यान-साधना का भी परिचय कराया है। 'उग्गतवे' आदि चार विशेषणों से सूचित किया है कि वे 'उग्रतपस्वी'-इसका अर्थ है, जिस तप की साधना मानव नहीं कर सके, दीप्ततपस्वी-तपरूपी अग्नि से जिन्होंने कर्म वन को जला दिया हो, तप्ततपस्वी-तप द्वारा कर्मों को ॥ संतप्त/चलित कर दिया हो, महातपस्वी-वे सर्वथा निष्काम/इच्छादोष से रहित थे। उच्छृढसरीरे-शरीर के प्रति जिनकी किंचित् मात्र ममता नहीं थी। संखित्तविपुलतेयलेसे-तपःसाधना द्वारा जिन्हें विशाल तेजोलब्धि प्राप्त थी, किन्त उसे अपने शरीर में ही अन्तर्लीन कर लिया, जिससे किसी को कोई हानि नहीं पहँचे। सबक्खरसन्निवातीवर्णमाला के समस्त अक्षरों के संयोग से बनने वाले समस्त पदों, मंत्राक्षरों आदि के ज्ञाता थे।
सूत्र [ ४ ] में गौतम स्वामी के मन में उठी जिज्ञासा के लिए जायसड़ढे आदि तीन विशेषण दिये हैं। जिनका अर्थ है-जायसड्ढे-श्रद्धा-तत्त्व जानने की रुचि पैदा हुई। जायसंसए-मन में संशय या जिज्ञासा उत्पन्न हुई कि भगवान ने ऐसा क्यों, किसलिए कहा? जायकोऊहल्ले-मन में कुतूहल या आश्चर्य उत्पन्न हुआ कि भगवान इसका क्या उत्तर देते हैं?
श्रद्धा. संशय और कतहल के साथ. जाय, उप्पण्ण, संजाय एवं समप्पण्ण-आदि विशेषण हैं, जिनका अर्थ हैजात-बीजारोपण, उत्पन्न-अंकुरण होना, संजात-वृद्धिंगत होना, समुप्पन्न-निष्पन्न होगा। यह जिज्ञासा के क्रमिक विकास व निरन्तरता का सूचक है।
Elaboration-This aphorism [3] provides a glimpse of the physical and spiritual personality of Ganadhar Gautam Swami. Along with his physical perfection and beauty, his extreme austerities and spiritual accomplishments have also been mentioned. The four adjectives used for his austerities convey : Ugratapasvi-he had reached a level of severity of austerities difficult for an ordinary person to reach; Deeptatapasvi—with fi the radiant fire of austerities he had burnt the jungle of karmas; Taptatapasvi—with the simmering heat of austerities he had incinerated and disintegrated karmas; Mahatapasvi-he had reached the lofty level of austerities where he was free of all desires. Other adjectives are : Uchchhudhasarire-he had no fondness for his body, in other words he had completely dissociated himself from his body. SankhittavipulateyaleseAfter acquiring the vipul tejoleshya (great radiant energy) through his austerities, he had tempered and contained it so that it did not harm anyone. Savvakkhar-sannipati-he had detailed knowledge of all permutations and combinations of all the letters of the alphabet.
卐5 555555555555555)))))))))))))))))))))))))))))
प्रथम शतक : प्रथम उद्देशक
(9)
First Shatak : First Lesson
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org