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live doing violent or sinful activities (aarambh), resolving to indulge in sinful activity (samrambh), and doing acts of tormenting (samaarambh). While not indulging in violent or sinful activities (aarambh), not resolving to indulge in sinful activity (samrambh), and not indulging in acts of tormenting (samaarambh); while not living doing violent or sinful activities (aarambh), not resolving to indulge in sinful activity (samrambh), and not doing acts of tormenting (samaarambh) that living being does not cause misery... and so on up to... torment many praan, bhoot, jivq, and sattva (beings, organisms, souls and entities).
[प्र. ३ ] से जहानामए केइ पुरिसे सुक्कं तणहत्थयं जाततेयंसि पक्खिवेज्जा, से नूणं मंडियपुत्ता ! से सुक्के तणहत्थए जायतेयंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव मसमसाविज्जइ ?
[उ. ] हंता, मसमसाविज्जइ।
[प्र. ४ ] से जहानामए केइ पुरिसे तत्तंसि अयकवल्लंसि उदयबिंदु पक्खिवेज्जा, से नूणं मंडियपुत्ता ! से उदयबिंदू तत्तंसि अयकवल्लंसि पक्खित्ते समाणे खिप्पामेव विद्धंसमागच्छइ ?
[उ. ] हंता, विद्धंसमागच्छइ।
[प्र. ३ ] (भगवान-) जैसे, (कल्पना करो), कोई पुरुष सूखे घास के पूले को अग्नि में डाले तो क्या मण्डितपुत्र वह सूखे घास का पूला अग्नि में डालते ही शीघ्र जल जाता है ?
[उ. ] (मण्डितपुत्र-) हाँ, भगवन् ! वह शीघ्र ही जल जाता है।
[प्र. ४ ] (भगवान-) (कल्पना करो) जैसे कोई पुरुष तपे हुए लोहे के कड़ाह पर पानी की बूंद डाले तो क्या मण्डितपुत्र ! तपे हुए लोहे के कड़ाह पर डाली हुई वह जलबिन्दु अवश्य ही शीघ्र नष्ट हो जाती है ?
[उ. ] (मण्डितपुत्र-) हाँ, भगवन् ! वह जलबिन्दु शीघ्र नष्ट हो जाती है।
[Q.3] (Bhagavan-) For example (consider) a man throws a bundle of hay in fire; Mandit-putra ! Does it not burn at once ?
[Ans. (Mandit-putra-) Yes, Bhante ! It at once burns.
[Q.4] (Bhagavan-) For example (consider) a man pours a drop of water on a red hot pan; Mandit-putra ! Does it not evaporate at once ?
[Ans.] (Mandit-putra-) Yes, Bhante ! It at once evaporates.
[५] से जहानामए हरए सिया पुण्णे पुण्णप्पमाणे वोलट्टमाणे वोसट्टमाणे समभरघडत्ताए चिट्ठति ? हंता चिट्ठति।
अहे णं केइ पुरिसे तंसि हरयंसि एगं महं नावं सत्तासवं सयच्छिदं ओगाहेज्जा, से नूणं मंडियपुत्ता ! सा नावा तेहिं आसवद्दारेहिं आपूरेमाणी आपूरेमाणी पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठति ? हंता चिट्ठति।
भगवतीसूत्र (१)
(450)
Bhagavati Sutra (1) |
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