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五步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步!
१४. [प्र. १ ] जावं च णं भंते ! से जीवे नो एयति जाव नो तं तं भावं परिणमति तावं च णं तस्स जीवस्स अंते अंतकिरिया भवति ?
[उ. ] हंता, जाव भवइ। [प्र. २ ] से केणट्टेणं भंते ! जाव भवति ?
[उ. ] मंडियपुत्ता ! जावं च णं से जीवे सया समियं णो एयति जाव णो परिणमइ तावं च णं से जीवे नो आरभति, नो सारभति, नो समारभति, नो आरंभे वट्टइ, णो सारंभे वट्टइ, णो समारंभे वट्टइ, अणारभमाणे, असारभमाणे, असमारभमाणे, आरंभे अवट्टमाणे, सारंभे अवट्टमाणे, समारंभे अवट्टमाणे बहूणं पाणाणं, भूताणं, जीवाणं, सत्ताणं अदुक्खावणयाए जाव अपरितावणयाए वट्टइ।।
१४. [प्र. १ ] भगवन् ! जब वह जीव सदा के लिए समितरूप से कम्पित नहीं होता, यावत् उन-उन भावों में परिणत नहीं होता; तब क्या उस जीव की अन्तिम समय में अन्तक्रिया (मुक्ति) नहीं हो जाती?
[उ. ] हाँ, (मण्डितपुत्र !) ऐसे जीव की अन्तिम समय में अन्तक्रिया (मुक्ति) हो जाती है। [प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा है कि ऐसे जीव की अन्तक्रिया-मुक्ति हो जाती है ?
[उ. ] मण्डितपुत्र ! जब वह जीव सदा (के लिए) समितरूप से भी कम्पित नहीं होता, यावत् उनउन भावों में परिणत नहीं होता, तब वह जीव आरम्भ नहीं करता, संरम्भ नहीं करता एवं समारम्भ भी नहीं करता, और न ही वह जीव आरम्भ में, संरम्भ एवं समारम्भ में प्रवृत्त होता है। आरम्भ, संरम्भ
और समारम्भ नहीं करता हुआ तथा आरम्भ, संरम्भ और समारम्भ में प्रवृत्त न होता हुआ जीव, बहुत-से प्राणों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को दुःख पहुँचाने में यावत् परिताप उत्पन्न करने में प्रवृत्त (या निमित्त) नहीं होता।
14. [Q. 1] Bhante ! When a living being (jiva) does not tremble always every moment... and so on up to... accordingly does not change its state (bhaava), then at the last moment (of his life) does he undergo ant-kriya (the terminal-activity or liberation)?
[Ans.] Yes (Mandit-putra!) That is correct... and so on up to... at the last moment (of his life) he undergoes ant-kriya (the terminal-activity or liberation).
(Q. 2] Bhante ! Why is it said that at the last moment he undergoes ant-kriya (the terminal-activity or liberation) ?
[Ans.] O Mandit-putra ! As long as a living being (jiva) does not tremble always every moment... and so on up to... accordingly does not change its state (bhaava), he does not continue to indulge in violent or sinful activities (aarambh), does not resolve to indulge in sinful activity (samrambh), and avoids acts of tormenting (samaarambh); he does not
| तृतीय शतक : तृतीय उद्देशक
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Third Shatak: Third Lesson
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