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beacon on the path of victory over attachment and aversion (janaye or jnata/jnapak); the enlightened (buddhe or buddha); the giver of enlightenment (bohaye or bodhak); who is the liberated (mutte or mukta); the liberator (moyaye or mochak); all-knowing (savvannu or sarvajna); all-seeing (savvadariso or sarvadarshi); the epitome of
beatitude (siva or Shiva); unwavering (ayal or achal); free of ailments 41 (arua or aruja); infinite and eternal (anant); free of decay (akkhaya or # akshaya); beyond all obstructions (avvavaha or avyabadh); the aspirant
of and destined to attain the state of ultimate perfection (siddha gai or siddha gati) from where there is no return to the cycles of rebirth (apunaravattiam or apunaravartak); ...and so on up to... Samavasaran 4 (to be read as mentioned in Aupapatik Sutra). Congregation came out (Citizens of Rajagriha including kings and other eminent people came out in throngs for beholding, paying homage and obeisance to Bhagavan
Mahavir and to listen his sermon. Detailed description should be read as F in Aupapatik Sutra). Bhagavan gave his sermon and the congregation
dispersed to return home after listening to the sermon and resolving to follow it to the best of one's ability. गणधर इन्द्रभूति GANADHAR INDRABHUTI __४. [ ३ ] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूती नामं अणगारे गोयमसगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसभनारायसंघयणे कणग-पुलगणिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूटसरीरे संखित्तविपुलतेयलेसे चउदसपुब्बी चउनाणोवगए सव्वक्खरसन्निवाती समणस्स भगवतो महावीरस्स अदूरसामंते उडे जाणु अहोसिरे झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ।
४. [ ३ ] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के पास (न तो बहुत दूर, न बहुत निकट), उत्कुटुकासन से (दोनों घुटना ऊँचा किये हुए) नीचे सिर झुकाए हुए, ध्यानरूपी कोठे में प्रविष्ट (ध्यान में तल्लीन) श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ शिष्य इन्द्रभूति नामक अनगार संयम और तप से 5 आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे। वह गौतम-गोत्रीय थे, शरीर से-सात हाथ ऊँचे, समचतुरस्त्र संस्थान एवं वज्रऋषभनाराचसंहनन वाले थे। उनके शरीर का वर्ण सोने की रेखा के समान है तथा पद्म-पराग के समान (गौर) था। वे उग्रतपस्वी, दीप्ततपस्वी, तप्ततपस्वी, महातपस्वी, उदार, घोर (परीषह तथा इन्द्रियादि पर विजय पाने में कठोर), घोरगुण (दूसरों द्वारा दुश्चर मूलगुणादि सम्पन्न), घोरतपस्वी, घोर (कठोर) ब्रह्मचर्यवासी, शरीर की विभूषा के त्यागी थे। उन्होंने विपुल (व्यापक) तेजोलेश्या को संक्षिप्त (अपने शरीर में अन्तर्लीन) कर ली थी, वे चौदह पूर्वो के ज्ञाता और चतुर्ज्ञानसम्पन्न सर्वाक्षर-सन्निपाती थे।
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प्रथम शतक : प्रथम उद्देशक
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First Shatak: First Lesson
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