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का पूर्वभव PAST BIRTH OF CHAMARENDRA
१९. [ प्र. ] चमरेणं भंते ! असुरिंदेणं असुररण्णा सा दिव्या देविड्डी तं चेव जाव किण्णा लद्धा पत्ता 5 अभिसमन्नागया ?
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Where did that divine opulence... and so on up to ... influence go and disappear (after the dance performance ) ?”
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[ उ. ] (गौतम ) यहाँ भी कूटाकारशाला का दृष्टान्त समझना चाहिए।
18. [Q.] Oh ! Bhante ! (How astonishing !) Asurendra Chamar, the 5 overlord (Indra) of Asurs, is endowed with so great opulence. Bhante !
[Ans.] (Gautam ! ) Here the example of Kootakar Shala (camouflaged house) should be repeated.
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5 बेभेले
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चमरेन्द्र
[ उ. ] एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले
नामं सन्निवेसे होत्था । वण्णओ । तत्थ णं बेभेले सन्निवेसे पूरणे नामं गाहावती परिवसति अड्ढे दित्ते
जहा तामलिस्स वत्तव्यया तहा नेयव्वा । नवरं चउप्पुडयं दारुमयं पडिग्गहं करेत्ता जाव विपुलं असण- पाण
5 देव - प्रभाव किस प्रकार उपलब्ध हुई, प्राप्त हुई और अभिसमन्वागत हुई ( अभिमुख आई ) ?
खाइम - साइमं जाव सयमेव चउप्पुडयं दारुमयं पडिग्गहं गहाय मुंडे भवित्ता दाणामाए पव्वज्जाए पव्वइत्तए ।
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१९. [ प्र. ] भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर को वह दिव्य देव ऋद्धि और यावत् वह सब
19. [Q.] Bhante ! How did Asurendra Chamar, the overlord (Indra) of Asurs get, acquire and manifest (abhimukh) that divine opulence... and on up to... and influence ?
[Ans.] Gautam ! During that period of time there was an inhabited area (sannivesh) named Bebhel in the valley of Vindhya mountain in Bharat-varsh in this Jambu continent. In Bebhel lived a householder 5] ( gathapati ) named Puran. He was very rich and influential. Here the
of Tamali should be repeated till he accepted initiation. The difference being that he (Puran) made a wooden bowl with four
Third Shatak: Second Lesson
[उ.] गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में, विन्ध्याचल की तलहटी में 'बेभेल' नामक सन्निवेश था, वहाँ 'पूरण' नामक एक गृहपति रहता था। वह 5 बहुत धनाढ्य और प्रभावशाली था । यहाँ तामली की तरह 'पूरण' गृहपति की प्रव्रज्या लेने तक की सारी वक्तव्यता जान लेनी चाहिए। विशेष यह है कि चार खानों (पुटकों) वाला काष्ठमय पात्र बनाकर यावत् विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम रूप चतुर्विध आहार बनवाकर ज्ञातिजनों आदि को भोजन कराकर तथा उनके समक्ष अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंपकर यावत् स्वयमेव चार खानों वाले काष्ठपात्र लेकर मुण्डित होकर 'दानामा' नामक प्रव्रज्या अंगीकार करने का संकल्प किया यावत् तद्नुसार प्रव्रज्या अंगीकार की ।
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तृतीय शतक: द्वितीय उद्देशक
(413)
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