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555555555555555555555555555555555 ॐ [उ. ] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। अर्थात् सभी असुरकुमार देव ऊपर सौधर्मकल्प तक नहीं ॥ मजा सकते; किन्तु महती ऋद्धि वाले असुरकुमार देव ही सौधर्म-देवलोक तक ऊपर जाते हैं।
16. [Q.] Bhante ! Do all Asur Kumar Devs go upward... and so on up 卐 to... Saudharma Kalp?
(Ans.] Gautam ! This is not correct. (That means all Asur Kumar Devs do not go upward... and so on up to... Saudharma Kalp.) Only those Asur Kumar Deus who are endowed with great opulence go upward... and so on up to... Saudharma Kalp.
१७. [प्र. ] एस वि य णं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया उड्ढं उप्पतियपुब्वे जाव सोहम्मो कप्पो ? [उ. ] हंता, गोयमा ! एस वि यणं चमरे असुरिंदे असुरराया उड्ढं उप्पतियपुवे जाव सोहम्मो कप्पो।
१७. [प्र. ] हे भगवन् ! क्या असुरेन्द्र असुरराज चमर भी पहले कभी ऊपर-यावत् सौधर्मकल्प तक जा चुका है ?
[उ.] हाँ, गौतम ! यह असुरेन्द्र असुरराज चमर भी पहले ऊपर-यावत् सौधर्मकल्प तक ऊर्ध्वगमन कर चुका है।
17. (Q.) Bhante ! Has Asurendra Chamar, the overlord (Indra) of Asurs, ever gone upward... and so on up to... Saudharma Kalp. __[Ans.] Yes, Gautam ! Asurendra Chamar, the overlord (Indra) of t Asurs, has gone upward... and so on up to... Saudharma Kalp in the past..
विवेचन : असुरेन्द्र चमर के सौधर्मकल्प तक ऊपर जाने के लिए तीन निश्रा (आश्रय-स्थान) का उल्लेख है-(१) अरिहंत-तीर्थंकर, केवलज्ञानी, अवधिज्ञानी तथा मनःपर्यवज्ञानी। (२) अरिहंत चैत्य-अरिहंत की
प्रतिमा अथवा अर्हत् मुनि (छद्मस्थ तीर्थंकर), (३) भावितात्मा अनगार (ज्ञान-दर्शन की भावना से आत्मा को ॐ भावित करने वाला सामान्य मुनि)।
Elaboration–There is a mention of three supports for Chamarendra rising up to Saudharma Kalp–(1) Arihant-Tirthankar, omniscient, Avadhi jnani and Manah-paryav jnani. (2) Arihant-chaitya-image of
Arihant or arhat-muni (Tirthankar in chhadmasth state). (3) Bhavitatma 451 anagar-sagacious ascetics who enrich their soul with pursuit of right i knowledge and perception.
१८. [प्र. ] अहोणं भंते ! चमरे असुरिंदे असुरकुमारराया महिडीए महज्जुतीए जाव कहिं पविट्ठा ? [उ. ] कूडागारसालादिदंतो भाणियब्वो।
१८. [प्र. ] 'अहो, भगवन् ! (आश्चर्य है) असुरेन्द्र असुरराज चमर ऐसी महाऋद्धि एवं महाधुति वाला है ! तो हे भगवन् ! (नाट्यविधि दिखाने के पश्चात्) उसकी वह दिव्य देव-ऋद्धि यावत् दिव्य देव-प्रभाव कहाँ चला गया?
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भगवतीसूत्र (१)
(412)
Bhagavati Sutra (1)
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