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१५. [प्र.] किं निस्साए णं भंते! असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो ?
[उ.] गोयमा ! से जहानामए इह सबरा इ वा, बब्बरा इ वा, टंकणा इवा, चुच्चुया इ वा पल्हया इवा, पुलिंदा इवा, एगं महं रण्णं वा, गड्डं वा, खड्डं वा, दुग्गं वा, दरिं वा, विसमं वा, पव्वयं वा, 5 णीसाए सुमहल्लमवि आसबलं वा हत्थिबलं वा जोहबलं वा धणुबलं वा आगलेंति, एवामेव असुरकुमारा वि देवा, णन्नत्थ अरिहंते वा, अरिहंतचेइयाणि वा, अणगारे वा भावियप्पणो निस्साए उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो ।
१५. [ प्र. ] भगवन् ! असुरकुमार देव किसका आश्रय (निश्रा) लेकर सौधर्मकल्प में ऊपर तक 5 जाते हैं ?
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[Ans.] Gautam ! After a lapse of infinite Utsarpini (progressive cycle of time) and Avasarpini (regressive cycle of time) such occasion comes in Lok when Asur Kumar Deus did, do and will move upwards and go up to Saudharma Kalp.
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15. [Q.] Bhante ! With what support do Asur Kumar Deus go upward... and so on up to... Saudharma Kalp ?
[Ans.] Just as here (in the world of men) people of the Shabar, Barbar, Tankan, Chuchuk (or Bhuttuya), Malhava or Pulind tribes harass, unsettle and defeat a large and organized army of cavalry, elephantbattalion, infantry or archers drawing support from some large forest, a F ditch, a gorge, a fort, a cave, difficult terrain (including a dense grove), or a hill; in the same way Asur Kumar Devs drawing support of Arihants
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[उ.] हे गौतम! जिस प्रकार यहाँ (इस मनुष्यलोक में) शबर, बर्बर, टंकण (जातीय म्लेच्छ) या
चुचुक (अथवा भुत्तुय), मल्हव अथवा पुलिन्द जाति के लोग किसी बड़े अरण्य (जंगल) का, गड्ढे का, खाई का, दुर्ग (किले) का गुफा का, किसी विषम ( ऊबड़-खाबड़ प्रदेश या बीहड़ वृक्षों से सघन ) स्थान
का, अथवा पर्वत का आश्रय लेकर एक महान् एवं व्यवस्थित अश्व सेना को, गज सेना को, पैदल ( पदाति) सेना को, अथवा धनुर्धारियों की सेना को आकुल-व्याकुल करके जीत लेते हैं; इसी प्रकार 5 असुरकुमार देव भी एकमात्र अरिहन्तों का या अरिहन्तदेव के चैत्यों का, अथवा भावितात्मा अनगारों का आश्रय (निश्रा) लेकर ऊर्ध्वगमन करते हैं, यावत् सौधर्मकल्प तक ऊपर जाते हैं।
or Chaitya of Arihants or sagacious ascetics (bhavitatma anagar) go
f upwards... and so on up to... Saudharma Kalp.
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१६. [ प्र. ] सव्वे विणं भंते ! असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो ?
[ उ. ] गोयमा ! णो इणट्टे समट्ठे, महिड्डिया णं असुरकुमार देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो । १६. [ प्र. ] भगवन् ! क्या सभी असुरकुमार देव सौधर्मकल्प तक ऊपर जाते हैं ?
तृतीय शतक: द्वितीय उद्देशक
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Third Shatak: Second Lesson
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