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51. [Q.] Bhante ! Is Sanatkumarendra, the Indra (overlord) of Devs ( gods ) - ( 1 ) worthy or unworthy of being liberated in future F (bhavasiddhik or abhavasiddhik) ? ( 2 ) righteous or unrighteous 5 (samyagdrishti or mithyadrishti) ? (3) with limited or unlimited cycles of rebirth (parattasamsari or anant-samsari)? (4) capable of enlightenment 卐 5 with ease or difficulty (sulabh-bodhi or durlabh-bodhi) ? (5) devout or heretic (aradhak or viradhak) ? (6) in his final birth or not (charam or f acharam)?
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[Ans.] Gautam ! Sanatkumarendra, the Indra (overlord) of Devs (gods) is worthy and not unworthy of being liberated in future (bhavasiddhik and not abhavasiddhik). In the same way he is righteous 5 (samyagdrishti), with limited cycles of rebirth (parattasamsari ), capable of enlightenment with ease (sulabh-bodhi), devout (aradhak) and in his final birth (charam). In other words only noble statements are valid.
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[उ. ] गौतम ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार, भवसिद्धिक है, अभवसिद्धिक नहीं; इसी तरह वह 5 सम्यग्दृष्टि है, परित्तसंसारी है, सुलभबोधि है, आराधक है, चरम है। (अर्थात् - इस सम्बन्ध में सभी) प्रशस्त पद ग्रहण करने चाहिए।
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५२. [प्र.] से केणणं भंते ?
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[उ. ] गोयमा ! सणकुमारे देविंदे देवराया बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं साविगाणं हियकामए सुहकामए पत्थकामए आणुकंपिए निस्सेयसिए हिय- सुह - निस्सेसकामए, से तेणट्टेणं गोयमा ! सणकुमारे णं भवसिद्धिए जाव नो अचरिमे ।
५२. [प्र. ] भगवन् ! किस कारण से (ऐसा कहा जाता है) ?
[उ. ] गौतम ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार बहुत-से श्रमणों, बहुत-सी श्रमणियों, बहुत-से श्रावकों और बहुत-सी श्राविकाओं का हितकामी ( हितैषी), सुखकामी (सुखेच्छु), पथ्यकामी ( पथ्याभिलाषी अथवा कष्टों से बचाने का इच्छुक ) आनुकम्पिक (कृपा व अनुकम्पा करने वाला), निःश्रेयसिक (निःश्रेयस = कल्याण या मोक्ष का इच्छुक ) है। वह उनका हित, सुख और निःश्रेयस चाहने वाला है। इसी कारण, गौतम ! सनत्कुमारेन्द्र भवसिद्धिक है, यावत् (चरम है, किन्तु) अचरम नहीं ।
तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक
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Third Shatak: First Lesson
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52. [Q.] Bhante ! Why is it so?
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[Ans.] Gautam ! Sanatkumarendra, the Indra (overlord) of Devs 5 (gods) wishes well (hit-kaami) of numerous Shramans, numerous Shramanis, numerous Shravaks and numerous Shravikas. He wishes them bliss (sukh-kaami) and comforts (pathya-kaami). Is compassionate
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