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(Ans.] Yes, Gautam ! They (Shakrendra and Ishanendra) do (have 45 4 dispute with each other). (They have common borders. There may bes other points of dispute too.)
[0.2] Bhante ! What do they do? (when such dispute arises)
(Ans.] Gautam ! When Shakrendra and Ishanendra have a dispute with each other, they think of Sanatkumarendra, the Indra (overlord) of Devs (gods) (establishing telepathic contact). When Shakrendra and ' Ishanendra think of him (his throne trembles and) Sanatkumarendra 455 soon appears before them. Whatever he advises and commands (they accept). In fact these two Indras obey him, serve him and are under his command and direction.
विशेष-'आढायमाणे-अणाढायमाणे'-इन दोनों शब्दों का तात्पर्य-यह भी है कि शक्रेन्द्र की अपेक्षा ईशानेन्द्र # का दर्जा ऊँचा है, इसलिए शक्रेन्द्र, ईशानेन्द्र के पास तभी जा सकता है जबकि ईशानेन्द्र शक्रेन्द्र को आदरपूर्वक
बुलाए। अगर आदरपूर्वक न बुलाये तो वह ईशानेन्द्र के पास नहीं जाता, किन्तु ईशानेन्द्र शक्रेन्द्र के पास बिना ,
बुलाए भी जा सकता है, क्योंकि उसका दर्जा ऊँचा है। (भगवतीसूत्र, प्रमेयचन्द्रिका टीका, हिन्दी-गुर्जर 9 भावानुवादयुक्त, भाग ३, पृष्ठ २८६) ___Elaboration-Adhayamane-anadhayamane-This phrase also indicates that the status of Ishanendra is higher than that of Shakrendra. As such Shakrendra can visit Ishanendra only when Ishanendra calls Shakrendra with due respect; if not he cannot go to Ishanendra. But Ishanendra, enjoying higher status, can visit Shakrendra without being called. (Bhagavati Sutra, Prameyachandrika
Tika with Hindi-Gujarati translation, part-3, p. 286) + सनत्कुमारेन्द्र की भवसिद्धिकता LIBERATION WORTHINESS OF SANATKUMARENDRA
५१. [प्र.] सणंकुमारे णं भंते ! देविंदे देवराया किं (१) भवसिद्धिए, अभवसिद्धिए ? (२) सम्मद्दिवी, मिच्छट्ठिी ? (३) परित्तसंसारए, अगंतसंसारए ? (४) सुलभवोहिए, दुल्लभबोहिए ? (५) आराहए, विराहए ? (६) चरिमे अचरिमे ?
[उ. ] गोयमा ! सणंकुमारे णं देविंदे देवराया भवसिद्धिए नो अभवसिद्धिए एवं सम्मट्ठिी, परित्तसंसारए, सुलभबोहिए आराहण, चरिमे, पसत्थं नेयव्वं ।
५१. [प्र.] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज सनत्कुमार क्या (१) भवसिद्धिक (भविष्य में सिद्धि प्राप्त करने योग्य) है या अभवसिद्धिक है ? (२) सम्यग्दृष्टि है या मिथ्यादृष्टि है ? (३) परित्त (परिमित) संसारी ॐ है या अनन्त (अपरिमित) संसारी? (४) सुलभबोधि है या दुर्लभबोधि ? (५) आराधक है अथवा 卐 विराधक ? (६) चरम (जिसका यही अन्तिम भव हो) है अथवा अचरम?
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Bhagavati Sutra (1)
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