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________________ 步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步日 [उ. ] हंता, पभू। जहा पादुब्भणा। ४९. [प्र. १ ] अस्थि णं भंते ! तेसिं सक्कीसाणाणं देविंदाणं देवराईणं किच्चाई करणिज्जाइं समुप्पजंति ? [उ. ] हंता, अत्थि। [प्र. २ ] से कहमिदाणिं पकरेंति ? [उ. ] गोयमा ! ताहे चेव णं से सक्के देविंदे देवराया ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियं पाउब्भवति, ईसाणे णं देविंदे देवराया सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो अंतियं पाउन्भवइ-'इति भो ! सक्का ! देवराया ! + दाहिणलोगाहिवती !' 'इति भो ! ईसाणा ! देविंदा ! देवराया ! उत्तरड्ढलोगाहिवती !' 'इति भो' त्ति ते अन्नमन्नस्स किच्चाई करणिज्जाइं पच्चणुभवमाणा विहरंति। ४८. [प्र. ] भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, देवेन्द्र देवराज ईशान के साथ वार्तालाप करने में समर्थ है ? __[उ. ] हाँ, गौतम ! वह वार्तालाप करने में समर्थ है। जिस तरह पास जाने के सम्बन्ध में दो आलापक कहे हैं, (उसी तरह यहाँ जानें)। ४९. [प्र. १ ] भगवन् ! उन देवेन्द्र देवराज शक्र और देवेन्द्र देवराज ईशान के बीच में परस्पर कोई कृत्य करणीय करने योग्य कार्य समुत्पन्न होते हैं ? [उ. ] हाँ, गौतम ! समुत्पन्न होते हैं ? ॐ [प्र. २ ] भगवन् ! जब इन दोनों के कोई कृत्य (प्रयोजन) या करणीय (विचार) होते हैं, तब वे + कैसे व्यवहार (कार्य) करते हैं ? ॐ [उ. ] गौतम ! जब देवेन्द्र देवराज शक्र को कार्य होता है, तब वह (स्वयं) देवेन्द्र देवराज ईशान के समीप प्रकट होता है और जब देवेन्द्र देवराज ईशान को कार्य होता है, तब वह (स्वयं) देवेन्द्र देवराज शक्र के निकट जाता है। उनके परस्पर सम्बोधित करने का तरीका यह है- 'हे दक्षिणार्द्ध लोकाधिपति देवेन्द्र देवराज शक्र !' (शक्रेन्द्र पुकारता है-) हे उत्तरार्द्ध लोकाधिपति देवेन्द्र देवराज ईशान !' (यहाँ), दोनों ओर से 'इति भो-इति भो !' (अजी ! ऐसी बात है) (इस प्रकार के शब्दों से परस्पर) सम्बोधित ॐ करके वे एक-दूसरे के कृत्यों (प्रयोजनों) और करणीयों (विचारों) को अनुभव करते समझते हैं। 4. 48. (Q.) Bhante ! Is Devendra Shakra, the Indra (overlord) of Deus (gods) capable of conversation with Ishanendra, the Indra (overlord) of Deus (gods)? (Ans.] Gautam ! Here the two statements about ‘appearing should be repeated about 'conversation'. 49. [Q. 1] Bhante ! Does an occasion or need to come together arise between Devendra Shakra, the Indra (overlord) of Devs (gods) and Ishanendra, the Indra (overlord) of Devs (gods)? 55455555555554545445454545555555555555555555555 भगवतीसूत्र (१) (396) Bhagavati Sutra (1) 95%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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