________________
[प्र. २ ] से भंते ! किं आढायमाणे पभू, अणाढायमाणे पभू ? [उ. ] गोयमा ! आढायमाणे वि पभू, अणाढायमाणे वि पभू। ४६. [प्र. १ ] भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान, क्या देवेन्द्र देवराज शक्र के पास जाने में समर्थ है ? [उ. ] हाँ, गौतम ! शक्रेन्द्र के पास जाने में समर्थ है।
[प्र. २ ] भगवन् ! (जब ईशानेन्द्र, शक्रेन्द्र के पास जाता है तो), क्या वह आदर करता हुआ जाता म है, या अनादर करता हुआ जाता है ?
. [उ.] गौतम ! (जब ईशानेन्द्र, शक्रेन्द्र के पास जाता है, तब) वह आदर करता हआ भी जा फ़ सकता है, और अनादर करता हुआ भी जा सकता है। क्योंकि उसका स्थान ऊँचा है) ___46. [Q. 1] Bhante ! Is Ishanendra, the Indra (overlord) of Devs (gods) capable of appearing before Devendra Shakra, the Indra (overlord) of
Devs (gods)? ____ [Ans.] Yes, Gautam ! Ishanendra is capable of appearing before Shakrendra.
[Q. 2] Bhante ! (When Ishanendra comes to Shakrendra) Does he come showing respect? Or does he come showing disrespect ?
[Ans.] Gautam ! (When Ishanendra comes to Shakrendra) He may come showing respect and he may also come showing disrespect. 卐 (because his status is higher).
४७. [प्र. ] पभू णं भंते ! सक्के देविंदे देवराया ईसाणं देविंदं देवरायं सपक्खिं सपडिदिसिं समभिलोएत्तए ?
[उ. ] जहा पादुद्भवणा तहा दो वि आलावगा नेयव्या।
४७. [प्र. ] भगवन् ! क्या देवेन्द्र देवराज शक्र, देवेन्द्र देवराज ईशान के समक्ष (चारों दिशाओं में) है तथा सप्रतिदिश (चारों कोनों में = सब ओर) देखने में समर्थ है?
[उ. ] गौतम ! जिस तरह से प्रादुर्भूत होने (जाने) के सम्बन्ध में दो आलापक कहे हैं, उसी तरह से 卐 देखने के सम्बन्ध में भी दो आलापक कहने चाहिए।
47. [Q.] Bhante ! Is Devendra Shakra, the Indra (overlord) of Devs 4 (gods) capable of looking in all the cardinal and intermediate directions
before Ishanendra, the Indra (overlord) of Devs (gods)? ___[Ans.Gautam ! Here the two statements about 'appearing' should be repeated about looking'.
४८. [प्र. ] पभू णं भंते ! सक्के देविंदे देवराया ईसाणेणं देविंदेणं देवरण्णा सद्धिं आलावं वा संलावं ॐ वा करेत्तए?
तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक
(395)
Third Shatak: First Lesson
男%%%
%%%%
%%%
%
%%
%%%
%%%%%
%
%%
%%%%%%
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org