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________________ गगगगगगगगगगगगगगगhhhhhhhhhhhhhhhhhh & 5 555555फ्र 卐 तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं तामलिं बालतवस्सिं बलिचंचाए रायहाणीए ठितिपकप्पं पकरावेत्तए" 5 त्ति कट्टु अन्नमन्नस्स अंतिए एयम पडिसुणेंति, पडिसुणित्ता बलिचंचाए रायहाणीए मज्झमज्झेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव रुयगिंदे उप्पायव्वए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता वेउव्वियसमुग्धाएणं समोहणंति जाव उत्तरवेउव्वियाई रुवाई विकुव्वंति, विकुव्वित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए जइणाए छेयाए सीहाए सिग्घाए दिव्वाए उदूधुयाए देवगतीए तिरियमसंखेज्जाणं दीव-समुद्दाणं मज्झमज्झेणं 5 जेणेव जंबुद्दीवे दीवे जेणेव भारहे वासे जेणेव तामलित्ती नगरी जेणेव तामली मोरियपुत्ते तेणेव उवागच्छंति वागच्छित्ता तामलिस्स बालतवस्सिस्स उप्पिं सपक्खिं सपडिदिसिं ठिच्चा दिव्वं देविडिं दिव्वं देवज्जुतिं दिव्यं वाणुभागं दिव्यं बत्तीसविहं नट्टविहिं उवदंसेंति । तालिं बालवस्सिं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, वंदंति नम॑संति, नमसित्ता एवं वयासी" एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हे बलिचंचारायहाणीवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य देवाप्पियं वंदामो नमसामो जाव पज्जुवासामो । अम्हं णं देवाणुप्पिया ! बलिचंचा रायहाणी अनिंदा 5 अपुरोहिया, अम्हे य णं देवाणुप्पिया ! इंदाहीणा इंदाहिट्ठिया इंदाहीणकज्जा, तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! बलिचंचं रायहाणिं आढाह, परियाणह, सुमरह, अट्ठ बंधह, णिदाणं पकरेह, ठितिपकप्पं पकरेह । तए णं तुभे कालमासे कालं किच्चा बलिचंचारायहाणीए उववज्जिस्सह, तए णं तुब्भे अम्हं इंदा भविस्सह, तए णं तुम्हेहिं सद्धिं दिव्वाई भोगभोगाई भुजंमाणा विहरिस्सह ।” ३०. उस काल उस समय में बलिचंचा (उत्तर दिशा के असुरेन्द्र असुरकुमारराज बलि की ) राजधानी इन्द्रविहीन और (इन्द्र के अभाव में) पुरोहित (शान्ति कर्म करने वाले देव) से विहीन थी । तब बलिचंचा राजधानी निवासी बहुत-से असुरकुमार देवों और देवियों ने तामली बाल - तपस्वी को अवधिज्ञान से देखा। देखकर उन्होंने एक-दूसरे को बुलाया और बुलाकर इस प्रकार कहा- - 'देवानुप्रियो ! (आपको मालूम ही है कि) बलिचंचा राजधानी ( इस समय ) इन्द्र से विहीन और पुरोहित से भी विहीन हैं । हे देवानुप्रियो ! हम सब ( अब तक) इन्द्राधीन और इन्द्राधिष्ठित ( रहे) हैं, अपना सब कार्य इन्द्र की 5 अधीनता में होता है । हे देवानुप्रियो ! यह तामली बाल - तपस्वी ताम्रलिप्ती नगरी के बाहर उत्तर-पूर्व 5 दिशाभाग में निवर्तनिक मण्डल का आलेखन करके, संलेखना तप की आराधना से अपनी आत्मा 5 5 F F को सेवित करके, आहार- पानी का सर्वथा प्रत्याख्यान कर, पादपोपगमन अनशन को स्वीकार कर फ स्थित है। 卐 अतः हे देवानुप्रियो ! हमारे लिए यही श्रेयस्कर है कि तामली बाल - तपस्वी को बलिचंचा राजधानी 5 में (इन्द्र रूप में) स्थिति प्रकल्प - स्थिति करने ( आकर रहने) का संकल्प कराएँ। ऐसा विचार करके 5 परस्पर एक-दूसरे के पास ( इस बात के लिए) वचनबद्ध हुए। फिर सब बलिचंचा राजधानी के 5 बीचोंबीच होकर निकले और जहाँ रुचकेन्द्र उत्पात पर्वत था, वहाँ आए। वहाँ आकर उन्होंने वैक्रिय समुद्घात से अपने आपको समवहत (युक्त) किया, यावत् उत्तरवैक्रिय रूपों की विकुर्वणा की । फिर उस उत्कृष्ट, त्वरित, चपल, चण्ड, जयिनी, छेक (निपुण), सिंहसदृश, शीघ्र, दिव्य और उद्धृत देवगति से तिरछे असंख्येय द्वीप - समुद्रों के मध्य में से होते हुए जहाँ जम्बूद्वीप नामक द्वीप था, जहाँ भारतवर्ष था, 5 卐 तृतीय शतक : प्रथम उद्देशक ( 381 ) Jain Education International Third Shatak: First Lesson For Private & Personal Use Only 5 15 55 55 5 5 5 55 55555 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5955 55 2 फ्र www.jainelibrary.org
SR No.002902
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2005
Total Pages662
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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