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05555555 5.45 55 45 45 45 5.45 45 45 45 45 5 55 5.45 45 45 45 45 45 55555555555550 फ़ त्रायस्त्रिंशक देवों पर आधिपत्य करता हुआ यावत् विचरण करता है। (अर्थात्-) वह चमरेन्द्र इतनी
महान् ऋद्धि वाला है, यावत् ऐसे महाप्रभाव वाला है; तथा उसकी विक्रिया करने की शक्ति इस प्रकार 卐 है-हे गौतम ! जैसे-कोई युवा पुरुष (अपने) हाथ से युवती स्त्री के हाथ को (दृढ़तापूर्वक) पकड़ता है, .
अथवा जैसे-गाड़ी के पहिये (चक्र) की धुरी (नाभि) आरों से अच्छी तरह जुड़ी हुई एवं सुसम्बद्ध होती है है, इसी प्रकार असुरेन्द्र असुरराज चमर, वैक्रिय–समुद्घात करता है, समुद्घात करके शरीर से है संख्यात योजन लम्बा दण्ड निकालता है तथा उसके द्वारा कर्केतन रत्नों के, यावत् रिष्ट रत्नों के स्थूल के
(असार) पुद्गलों को झटक देता है और सूक्ष्म पुद्गलों को ग्रहण करता है। फिर दूसरी बार वैक्रिय ॐ समुद्घात करता है। (ऐसी प्रक्रिया से) हे गौतम ! वह असुरेन्द्र असुरराज चमर-बहुत-से (स्वशरीर
प्रमाण) असुरकुमार देवों और (असुरकुमार-) देवियों द्वारा (इस तिर्यग्लोक में) परिपूर्ण जम्बूद्वीप ॐ नामक द्वीप को आकीर्ण (व्याप्त), व्यतिकीर्ण (मिश्रित एकीभूत), उपस्तीर्ण (आच्छादित), संस्तीर्ण (समग्र के रूप में आच्छादित), स्पृष्ट (छूता हुआ), गाढ़ावगाढ़ करने (ठसाठस भरने में समर्थ है। हे गौतम ! इसके के
उपरान्त वह असुरेन्द्र असुरराज चमर, अनेक असुरकुमार-देव-देवियों द्वारा इस तिर्यग्लोक में भी ॐ असंख्यात द्वीपों और समुद्रों तक के स्थल को आकीर्ण, व्यतिकीर्ण, उपस्तीर्ण, संस्तीर्ण, स्पृष्ट और
गाढ़ावगाढ़ कर सकता है। (अर्थात्-चमरेन्द्र अपनी वैक्रिय शक्ति से दूसरे रूप इतने अधिक विकुर्वित कर सकता है, जिनसे असंख्य द्वीप-समुद्रों तक का स्थल भर जाता है।) __ हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर की ऐसी (पूर्वोक्त प्रकार की) शक्ति है, यह विषय मात्र है,
परन्तु क्रियात्मक दृष्टि से चमरेन्द्र ने इस शक्ति की सम्प्राप्ति से कभी (इतने रूपों की) विकुर्वणा की नहीं, ॐ न ही करता है, और न ही करेगा।
3. (Q.) During that period of time Agnibhuti Anagar, the second senior disciple of Bhagavan Mahavir, who belonged to the Gautam clan, who was seven cubits tall... and so on (was endowed with virtues as mentioned in Aupapatik Sutra) up to... while indulging in worship (of Bhagavan) he submitted-Bhante ! How great is the opulence (riddhi) of Chamarendra, the Indra (overlord) of Asurs ? How great is his radiance (dyuti)? How great is his strength (bal) ? How great is his fame (yash) ?
How great are his pleasures ? How great is his influence ? And how much is his capacity of transmutation (vikurvana)?
[Ans.] Gautam ! Chamarendra, the Indra (overlord) of Asurs has great opulence... and so on up to... influence. Reigning over sixty four thousand Samanik Devs (gods of same status) and thirty three Trayastrinshak Devs (gods qualified to be priests or ministers)... and so on up to... he lives in his capital city Chamarchancha. (In other words---) that Chamarendra is endowed with such great opulence... and so on up to... influence, and his capacity of transmutation (vikurvana) is as भगवतीसूत्र (१)
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Bhagavati Sutra (1)
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